Book Title: Pramana Pariksha
Author(s): Vidyanandacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 100
________________ ८२ : प्रमाण-परीक्षा तात्पर्य यह हुआ कि जिन्हें कारण कहा जा रहा है उन अतीत और भविष्यत्को कारण होने में वह सम्बन्धविशेष हेतु है। इसपर प्रश्न उठता है कि वह सम्बन्धविशेष क्या है ? क्योंकि अतीतका वर्तमान कार्यमें व्यापार सम्भव नहीं, वह कार्यके समयमें है ही नहीं, जैसे भविष्यत्का । यदि कहा जाय कि 'उसके होनेपर उसका होना' प्रत्यासत्तिविशेष है तो यह कथन भी दमदार नहीं है, क्योंकि अतीत और अनागतके अभावमें ही कार्य होता है, उनके सद्भावमें कार्य नहीं होता । अन्यथा कार्य और कारण दोनोंका एक काल हो जायेगा। फलतः समस्त सन्तान एकक्षणवर्ती हो जायेंगे। और एकक्षणवर्ती सन्तान नहीं है। सन्तान तो उसे कहा गया है जो भेदरहित नाना कार्यकारणक्षण हैं। शंका–अतीत और अनागत कारणके अपने कालमें रहनेपर कार्य होता है और उसके न रहनेपर नहीं होता, इस प्रकार होनेपर होना अन्वय और न होनेपर न होना व्यतिरेक है, यह अन्वय-व्यतिरेकरूप सम्बन्धविशेष अतीत-अनागत कारण और वर्तमान कार्य में विद्यमान है ही। अतः अतीत और अनागत भो कारण हो सकते हैं, कोई बाधा नहीं है ? समाधान-उक्त कथन युक्त नहीं है, क्योंकि जिन्हें कारण नहीं माना जाता, उन अतीततम और अनागततममें भी उक्त प्रकारका अन्वयव्यतिरेक पाये जानेसे कारणता स्वीकार करना पड़ेगी। अतः भिन्न कालवर्ती अतीत या अनागत पदार्थ कार्यका कारण नहीं हो सकता। किन्तु भिन्न देशवर्तीको कारण माननेमें कोई दोष नहीं है । उसके होनेपर कार्य होता हैं और न होनेपर नहीं होता । उदाहरणके लिए घट और कुम्हार आदिको लिया जा सकता है। कुम्हार आदिके अपने देशमें रहनेपर घट उत्पन्न होता है और उनके न रहनेपर नहीं होता, क्योंकि कुम्हार आदि अपने देशमें रहते हए घट आदिको बनाते हैं। पर जिसे कारण नहीं माना जाता, ऐसे भिन्न देशवर्तीका कार्यके साथ अन्वय-व्यतिरेक नहीं है, क्योंकि उसका उसमें व्यापार नहीं है, जैसे अतीत और अनागतका कार्यमें व्यापार सम्भव नहीं है । यथार्थमें किसी विद्यमानका ही किसीमें व्यापार हो सकता है, जो है ही नहीं उसका व्यापार नहीं हो सकता। जैसे खरविषाणका व्यापार असम्भव है। अतः भिन्नदेशवर्ती तो कोई किसी कार्यमें व्यापार कर सकता है और इसलिए वह सहकारी कारण हो सकता है। किन्तु भिन्नकालवर्ती नहीं, क्योंकि वैसी प्रतीति ही नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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