Book Title: Prakrit Vyakaranam
Author(s): Narmadashankar Damodar Shastri
Publisher: Narmadashankar Damodar Shastri
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प्रथमःपादः। हः अनेन वा संधिः सर्वत्र वलोपः शपोः सः श्रतः से? डित्यं दहिसरो दहीसरो । खाउ उदकं खाउदकं सर्वत्र वबुक् श्रतः से?पाठ पति क ग चेति तबुक् शक्तीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंजनस्यबुक् पश् वस्त्र सर्वत्र रबुक् स्तस्य थोऽसमस्त स्तंबे स्तवेवास्तस्य थःथनादौहित्वं द्वितीय पूर्वथस्य तः जसु शसू ङसित्तोछामि दीर्घः थथाडसेस्तो पुहिहिंतो लुक् डम् स्थाने दो क ग चेति द लोपः वार्ड मुग्धा ३१ टाकगटडेति गबुक अनादौ हित्वं द्वितीयतुर्ययोरुपरि पूर्वः पूर्वधस्य दः (टाङस्ङे रदादिदे छातुङसेः) टा स्थाने ३ ए मुझाए । मुहाश् । काद कादायां कादर कांदेराहाहिलंघाहि लंखवञ्चवंफमद सिह विलुपाः इत्यनेन कांक्षस्थाने मह इति वर्त्तते व्यंजनाददंते अत् लोकात् त्यादीनामाद्यत्रयस्याद्यस्येचेचौ तिव स्थाने इए, मह । महए । त्त स्यति नविष्यति हिरादिः हि श्रागमः त्यादीनां पश्यति स्थाने ३ य इति श्रात्तगौ नूब नविष्यंत्योश्च कृको बकुलाधिकारात् कचिदेकपदेऽपि संधिः समानानां दीर्घः काहि + ।काही । द्वितीय क गट डेति दबुक् क ग चे ति तययोर्मुक् समानानां दीर्घः ११ श्रतः से? बीउँ पानीयादिष्वित् इत इत बि. ॥५॥ टीका भाषांतर. पदयोः संधिः वा- व्यासज्ञषि एटले व्यास एवा झषि संस्कृत व्यासऋषि तेनुं प्राकृत वासेसी तथा वासइसी थाय. ते आप्रमाणे व्यासझषिः तेने अधोमनयां सूत्रथी यनो लोप कर्यों एटले वासऋषिः थयु. पनी इत्कृपादौ सूत्रथी ज्ञकारनो इ अयो. पनी था सूत्रवडे विकटपे संधि थतां अवर्णेवर्णा ए सूत्र लाग्युं एटले वासेषिः पनी शषोः सः सूत्रथी सू अतां वासेसिः श्रयु. पजी क्लीषे सौ दीर्घः सूत्रधी सि नो सी थयो, अने अंत्यव्यंजन सूत्रथी सू नो लुक् श्रयो एटले वासेसी तथा वासइसी एवा बे रूप सिद्ध थया. संस्कृत विषमातपः एटले विषम एवो श्रातप जे तडको तेनुं प्राकृतमा विसमायवो तथा विसमआयवो एवा बे रूप थाय. ते आप्रमाणे विषमआतपः शषोःसः ए सूत्र लागतां विसमआतप थयु. पी आ चासता सूत्रथी विकटपे संधि अतां समानांतेन दीर्घः ए सूत्र लागता विसमातपाययु. पली कगचेति ए सूत्रथी त नो लुक् थयो, अने अवर्णोयश्रुतिः ए सूत्रथी अ कारनो य थयो, एटले विसमायवः एवं थयु, पनी पोवः ए सूत्रथीप नो व थयो, अने अत: से? ए सूत्रथी स्त्र नो ओ अयो, एटले विसमायवो अने विसमआयवो एवा बे
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