Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 11
________________ ******* ********* * -*-*- * - - *-*-*-*- *-*-*-********* १२७ १२७ १२० . [10] ******************** क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या क्रमांक विषय . पृष्ठ संख्या १४. आहार द्वार समुच्चय जीवों में विभाग से १५. आदर्श आदि द्वार प्रयोग प्ररूपणा १६. कंबल द्वार ५२/४. गति प्रपात के भेद-प्रभेद १७. स्थूणा द्वार 9. प्रयोग गति १८. आकाश थिग्गल द्वार :: २. तत गति १९. द्वीप और उदधि द्वार ३. बन्धन छेदन गति द्वितीय उद्देशकद्वार ५९-१०६ ४. उपपात गति २०. बारह द्वार ५. क्षेत्रोपपात गति २१. इन्द्रियोपचय द्वार ६. भवोपपात गति २२. निवर्त्तना द्वार ७. नो भवोपपात गति १३४ २३. लब्धि द्वार 6. विहायोगति व २४. उपयोग द्वार उसके सतरह भेद १३0 २५. उपयोग काल द्वार सत्तरहवां लेश्या पद २६. इन्द्रिय अवग्रह द्वार २७. इन्द्रिय अवाय द्वार | प्रथम उद्देशक १४४-१६४ २८. ईहा द्वार ६४|१. उत्थानिका २९. अवग्रह द्वार ६५/२. · सप्त द्वार १४५ ३०. द्रव्येन्द्रिय द्वार ६८/३. नैरयिक आदि में सप्त द्वार ३१. एक जीव की अपेक्षा द्रव्येन्द्रियां 9. प्रथम द्वार १४५ ३२. अनेक जीवों की अपेक्षा द्रव्येन्द्रियां २. दूसरा द्वार 980 ३३. भावेन्द्रिय द्वार ९७ ३. तीसरा-चौथा द्वार ३४. एक जीव में परस्पर की अपेक्षा १०२ ४. पांचवां द्वार १४ए ३५. अनेक जीवों में परस्पर की अपेक्षा १०४ ५. छठा द्वार 940 सोलहवां प्रयोग पद १०७-१४३| ६. सातवां द्वार 949 १. प्रयोग के भेद १०७/४. भवनवासी देवों में सप्त द्वार २. समुच्चय जीव और चौबीस की प्ररूपणा १५२ दण्डकों में प्रयोग १०९/५. पृथ्वीकायिक आदि में सप्त द्वार १५४ OM ७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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