Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05 Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala View full book textPage 7
________________ शुद्धि पत्रक इस भाग को पहिले हमने दूसरे भाग का स्थान देना निश्चय किया था। इसके दो फार्म छपने के बाद कई कारणों से छपना बन्द हो गया। इस हालत में दूसरे भाग में जैन राजाओं का इतिहास छपा दिया । पुनः इसको हाथ में लेने के पूर्व चार भाग छप चुके । इस कारण इसको हमने पाँचवें भाग में स्थान दिया है। अतएव पाठक वर्ग को चाहिए कि इस किताब में जहाँ दूसरे भाग का उल्लेख देखें वहाँ पाँचवां भाग ही समझे। 'पृष्ठ पंक्ति मूल टीपण नं० . अशुद्धि शुद्धि ३ . , . अविश्वनीय अविश्वानीय ५६८ १६ ६ ० ३३० ३३०४१ ० ० 98 ० २६ ० dwr X ४ " ० ५० ११ , पच पत्र 6 ॥ १६ १७ ० ४१ २३-टीपण नं०५८ से ६३ को एक नम्बर आगे समझना। २७ ८ ० ७१ पृ० पृ० ४५ २७ ८ ० ७१ पृ० पृ० ४७ २७ १३ . ० ७२ पृ० पृ० १३ २६८ ० ७७ पृ० पृ० १६ पृ० ५२ ३० ६ ० ८१ ८२ ३० ६ ० ८१ पृ० पृ० ४३ ३० ७ ० ८२ पृ० पृ० २६ ३१ ६ ० ८६ पृ० पृ० १८ ० ० ० ० ० ० ० ur ur 9 ० ० wrPage Navigation
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