Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 12
________________ भी अब तक तुम कर रहे थे वह सब बिलकुल निर्जीव होकर गिर गया है; यदि भविष्य में कुछ भी नहीं बचा है; यदि तुम समग्र स्वप्न से निराशा में डूब गये हो, जिसे कीर्कगार्द ने तीव्र व्यथा कहा है; अगर तुम इस तीव्र व्यथा में हो, पीड़ित नहीं जानते कि क्या करना है, कहां जाना है, किसकी सहायता खोजनी है;बस पागलपन या आत्महत्या या मृत्य की कगार पर खड़े हो, यदि तम्हारे परे जीवन का ढांचा अचानक व्यर्थ हो गया है और यदि ऐसा क्षण आ गया है तो पतंजलि कहते हैं'अब योग का अनुशासन।' केवल अब, तुम योग के विज्ञान को, योग के अनुशासन को समझ सकते हो। यदि ऐसा क्षण नहीं आया तो तुम योग का अध्ययन किये चले जा सकते हो, तुम एक बड़े विद्वान बन सकते हो लेकिन तुम योगी नहीं बनोगे। तुम इस पर शोध-प्रबंध लिख सकते हो, भाषण भी दे सकते हो, लेकिन तुम योगी न बनोगे। वह क्षण अभी तुम्हारे लिए नहीं आया है। बौद्धिक तौर पर तुम इसमें रुचि ले सकते हो, मन के द्वारा तुम योग से संबंधित हो सकते हो लेकिन योग कुछ नहीं है, अगर यह अनुशासन नहीं है। योग कोई शास्त्र नहीं है; योग अनुशासन है। यह कुछ ऐसा है जिसे तुम्हें करना है। यह कोई जिज्ञासा नहीं है, यह दार्शनिक चिंतन भी नहीं है। यह इन सबसे कहीं गहरा है। यह तो सवाल है जीवन और मरण का। ___ यदि वह क्षण आ गया है जब कि तुम महसूस करते हो कि सारी दिशाएं अस्त-व्यस्त हो गयी हैं, सारी राहें खो गयी है,भविष्य अंधियारा है और हर इच्छा कडुआ गयी है और हर इच्छा द्वारा तुमने केवल निराशा ही पायी है, यदि आशाओं और सपनों की ओर सारी गतियां समाप्त हो चुकी हैं'अब योग का अनुशासन।' और यह 'अब' आया ही नहीं होगा तो मैं योग के विषय में कितना ही कहता जाऊं लेकिन तुम नहीं सुन पाओगे। तुम तभी सुन सकते हो, यदि वह 'क्षण' तुम में उपस्थित हो चुका है। ___क्या तुम वास्तव में असंतुष्ट हो? हर कोई कह देगा 'हां', लेकिन वह असंतुष्टि वास्तविक नहीं है। तुम इससे उससे -किसी बात से असंतुष्ट हो सकते हो लेकिन तुम पूरी तरह असंतुष्ट नहीं हो। तुम अब भी आशा किये जा रहे हो। तुम असंतुष्ट हो भी तो अतीत की किन्हीं आशाओं के कारण, लेकिन भविष्य के लिए तो तुम अब तक आशा किये जा रहे हो। तुम्हारी असंतुष्टि संपूर्ण नहीं है। तुम अब भी कहीं कोई संतोष, कहीं कोई संतुष्टि पा लेने को ललक रहे हो। कई बार तुम निराशा अनुभव करते हो लेकिन वह निराशा सच्ची नहीं है। तुम निराशा अनुभव करते हो क्योंकि कुछ आशाएं पूरी नहीं हुईं, कुछ आशाएं विफल हो गयी हैं। किंतु आशा अब भी जारी है। आशा गिरी नहीं। तुम अब भी आशा करोगे। तुम किसी विशेष आशा के प्रति ही असंतुष्ट हो लेकिन तुम आशा मात्र से असंतुष्ट नहीं हो। यदि तुम आशा मात्र से निराश हो गये हो तो वह क्षण आ गया है जब तुम योग में प्रविष्ट हो सकते हो। और यह प्रवेश किसी मानसिक और वैचारिक घटना में प्रविष्ट होने जैसा नहीं होगा। यह प्रवेश होगा एक अनुशासन में प्रवेश।

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