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मित्र-भेद
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तरह के हैं । ऐसी स्थिति में अगर पर-पुरुष अपने अधीन हों तो जवानी का फल भोगने वाली स्त्रियों का जन्म धन्य है । और भी
*"दैव योग से अगर बदसूरत आदमी भी मिल जाय तो छिनाल अकेले में उसके साथ मजे लेती है, पर मुश्किल से भी वह अपने सुन्दर पति का सहवास नहीं करती । "
वह बोली, “ बात तो ठीक है पर तुम्हीं बताओ कि कठिन बंधनों से जकड़ी हुई मैं वहाँ कैसे जा सकती हूँ? और मेरा पापी पति पास में ही पड़ा है ।" नाइन ने कहा, "सखी ! नशे में बेहोश यह सूर्य की किरणों के छूने के बाद ही जागेगा, इसलिए मैं तुझे छुड़ा देती हूँ | मझे तू अपनी जगह बाँधकर देवदत्त की खातिर करके जल्दी से वापस आ जा ।" उसने कहा, “ठीक! ऐसा ही होगा ।" बाद में उस नाइन ने अपनी सखी का बंधन खोलकर तथा उसके स्थान में उसी तरह अपने को बाँधकर उसे देवदत्त के पास संकेत स्थल पर भेजा । इसके बाद नशा उतर जाने पर तथा गुस्सा कुछ कम हो जाने पर बुनकर थोड़ी देर बाद उठा और बोला, "अरे कठोरभाषिणी, यदि आज से तू घर के बाहर न जाय न कठोर बातें कहे तो मैं तेरे बंधन खोल दूंगा ।" नाइन ने अपनी आवाज पहचाने जाने के डर से कुछ नहीं कहा । फिर भी बुनकर ने वही बात बार-बार दोहराई। जब उसने कोई जवाब नहीं दिया तब उसने गुस्से से तेज हथियार लेकर उसकी नाक काट दी और कहा," ले छिनाल ! ऐसी ही रह, मैं फिर तुझे मनाने वाला नहीं ।" यही बड़बड़ाता हुआ वह फिर सो गया। धन नाश और भूख से पीड़ि तथा जागते हुए देवशर्मा ने यह सब तिरिया चरित देखा । बुनकर की स्त्री ने भी देवदत्त के साथ भरपूर मजे उड़ाकर उसी के कुछ देर बाद अपने घर वापस आकर नाइन से कहा, " ओ ओ, तू मजे में तो है ? मेरे जाने के बाद यह पापी जागा तो नहीं था ?" नाइन ने जवाब दिया, “सिवाय नाक के बाकी सब शरीर की कुशल है। जल्दी से मेरे बंधन खोल जिससे
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