Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan
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लब्धप्रणाश
२४७ उत्साही सिपाहियों की राजा इच्छा करता है और कायरों को
छोड़ देता है।" उन दोनों ने भी घर पहुंचकर हँसते हुए अपने पिता के सामने बड़े भाई की हरकत कही , “हाथी को देखकर यह दूर से भाग गया।" यह सुनकर सियार के बच्चे को गुस्सा चढ़ आया और उसके होठ फड़कने लगे,आँखें लाल हो गई, भौंहों पर बल आ गए और उन तीनों को धिक्कारते हुए उसने डांटा। इस पर सिंहनी ने उसे अकेले में ले जाकर समझाया कि “वत्स ! तुम्हें ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। ये तेरे छोटे भाई हैं।" इस पर और भी क्रोधित होकर वह कहने लगा, “क्या मैं इनसे शौर्य में, रूप में और विद्या में कम हूँ जिससे ये मेरी हँसी उड़ाते हैं। इसलिए मुझे इन्हें जरूर मार डालना चाहिए।" यह सुनकर उसकी जान बचाने के लिए भीतर-ही-भीतर हँसती हुई सिंहनी ने कहा
"हे पुत्र! तू वीर है, विद्वान है, देखने में सुन्दर है, पर जिस खानदान
में तू पैदा हुआ है उसमें हाथी नहीं मारा जाता । हे वत्स! अब तू सुन । तू सियार का बच्चा है । मैंने दया करके दूध पिला कर तुझे पाला-पोसा है। इसलिए इन दोनों को तेरे सियार होने का पता न लगे, इसी बीच तू जल्दी से जाकर अपनी जाति से मिल जा, नहीं तो इन दोनों से मारे जाकर तुझे मृत्यु का रास्ता पकड़ना पड़ेगा।" यह सुनकर डर से घबराकर वह उसी समय भाग गया।
इसलिए जब तक ये राजपूत न जाने कि तू कुम्हार है इसी बीच में तू भाग जा, नहीं तो वे तुझे तकलीफ देंगे।" कुम्हार यह सुनकर जल्दी से भाग गया।
इसलिए मैं कहता हूं कि "अपना स्वार्थ छोड़कर जो कमअक्ल और दम्भी आदमी सच बोलता
है, वह दूसरे युधिष्ठिर की तरह अपने स्वार्थ से गिर जाता है। मूर्ख तुझे धिक्कार है कि तूने स्त्री के लिए ऐसा काम किया। स्त्रियों का विश्वास नहीं करना चाहिए। कहा भी है

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