Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 293
________________ २८० पञ्चतन्त्र त्रिलोचन शंकर को प्रसन्न किया । इसलिए हे भांजे ! मुझे अनभिज्ञ कहकर तू क्यों रोकता है ?" सियार ने कहा, "मामा ! अगर ऐसी बात है तो मैं बाड़े के बाहर बैठकर रखवालों के ऊपर नजर रखता हूं, तू मनमानी तरह से गा । इसके बाद गधे की आवाज सुनकर खेत के रखवाले क्रोध से दांत पीसते हुए दौड़े। गधे को देखकर लाठी से उन्होंने उसे इतना मारा कि वह जमीन पर गिर गया। इसके बाद उसके गले में ऊखल बांधकर वे सो गए। अपनी जाति के स्वभाव के अनुसार दर्द दूर हो जाने पर गधा एक क्षण में खड़ा हो गया । कहा है कि "कुत्ते, घोड़े और विशेषकर गधे पर मार की पीड़ा एक क्षण से अधिक नहीं रहती ।” बाद में वह ऊखल लिये हुए खेत की बाड़ तोड़ता हुआ भागने लगा । उस समय सियार ने उसे देखकर दूर से मुस्कराते हुए कहा- ܐܐ “मामा ! तुमने खूब गाया, मेरे मना करने पर भी तू नहीं रुका । तेरे गले में यह अपूर्व मणि बंधी है जो तेरे गाने का इनाम है ।" यह सुनकर चक्रधर ने कहा, "अरे मित्र ! यह ठीक है । अथवा ठीक ही कहा है- " जिसके पास अपनी बुद्धि नहीं होती, जो मित्र का कहा नहीं करता, वह मंथर बुनकर की तरह नष्ट हो जाता है ।" सुवर्णसिद्धि ने पूछा, “यह कैसे ?" वह कहने लगा- मंथर बुनकर की कथा "किसी शहर में मंथर नामक बुनकर रहता था। कपड़े बुनते हुए कभी उसके बुनने के काठ टूट गए। इस पर वह कुल्हाड़ी लेकर वन में काठ केलिए गया । घूमते हुए सड़क के किनारे उसने एक शिशपा का पेड़ देखा। इस पर उसने सोचा, 'यह बड़ा पेड़ दीख पड़ता है इसके काटने से बुनने के बहुत से सामान बन्द जायंगे ।' यह सोचकर उसने उस पर कुल्हाड़ी चला दी । उस पेड़ पर किसी वृक्ष देवता का आवास था । उसने बुनकर से कहा, “अरे!

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