Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 306
________________ अपरीक्षितकारक हुआ। वह जवान होने तक छिपे स्थान में रहकर यत्नपूर्वक पल-पुसकर बढने लगी। __उसी नगर में कोई अंधा रहता था। उसका मंथरक नाम का एक कुबड़ा आगे लकड़ी पकड़ने वाला था। उन दोनों ने डुग्गी सुनकर आपस में विचार किया, 'भाग्यवश कन्या मिलती हो तो हमें डुग्गी रोकनी चाहिए, जिससे सोना मिले और उसके मिलने से हमारी जिंदगी सुख से कटे । उस कन्या के दोष से कहीं मैं मर गया तो भी दरिद्रता से पैदा हुई उस तकलीफ से छुटकारा मिल जायगा। कहा है कि "लज्जा, स्नेह, वाणी की मिठास, बुद्धि, जवानी, स्त्रियों का साथ, अपनों का प्यार, दुःख की हानि, विलास, धर्म, तन्दुरुस्ती, बृहस्पति जैसी बुद्धि, पवित्रता, और आचार-विचार ये सब बातें, आदमियों का पेट-रूपी गढ़ा जब अन्न से भरा होता है, तभी संभव है।' यह कहकर उस अंधे ने मुनादी करने वाले को रोक दिया और कहा, "मैं उस राजकन्या से विवाह करूंगा, यदि राजा मुझे उसे देगा।" बाद में राज कर्मचारियों ने जाकर राजा से कहा, “देव! किसी अंधे ने मुनादी रोक दी है, इस बारे में क्या करना चाहिए ?" राजा ने कहा - "अंधा, बहरा, कोढ़ी और अन्त्यज जो कोई भी विदेश जाने को तैयार हो, वह एक लाख मुहरों के साथ इस कन्या को ग्रहण कर सकता है। राजा की आज्ञा से त्रिस्तनी को नदी के किनारे ले जाकर एक लाख मुहरों के साथ उसे अंधे को देकर तथा नाव पर बैठाकर मल्लाहों से राजपुरुषों ने कहा, "अरे! देश से बाहर ले जाकर किसी नगर में सपत्नीक इस अंधे को कुबड़े के साथ छोड़ देना।" ऐसा करने के बाद विदेश में जाकर मल्लाहों द्वारा बताए किसी नगर में तीनों घर खरीदकर सुख से रहने लगे । अंधा केवल पलंग पर पड़ा रहता था; घर का काम-काज कुबड़ा चलाता था । कुछ समय बीतने पर त्रिस्तनी का कुबड़े के साथ सम्बंध हो गया । अथवा ठीक ही कहा है कि "अगर आग ठंडी हो जाय, चन्द्रमा जलाने वाला हो जाय, समुद्र

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