Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 309
________________ ၃ ၄ पञ्चतन्त्र मदें करने लगी। उसी दिन से दूसरा सिर दुखी रहने लगा। एक दिन दूसरे सिर को एक जहरीला फल मिला। उसे देखकर उसने कहा, “अरे! स्वर्ग की चाह न करने वाले पुरुषाधम ! मुझे जहरीला फल मिला है । तेरे अपमान के कारण उसे मैं अभी खाता हूं।" पहले ने कहा , “मूर्ख! ऐसा मत कर। ऐसा करने पर हम दोनों का नाश हो जायगा।" ऐसा कहने पर भी दूसरे सिर ने अपमान के कारण वह फल खा लिया। अधिक कहने से क्या, उस फल के खाने से दोनों ही मर गए। इसलिए मैं कहता हूं कि "एक पेट और भिन्न सिर वाले एक दूसरे से फल खाने वाले भारुड पक्षियों की तरह एकता बिना मनुष्य का नाश हो जाता है।" चक्रधर ने कहा, “यह ठीक है; तू घर जा। पर तुझे अकेले नहीं जाना चाहिए। कहा है कि "स्वादिष्ट चीजों को अकेले नहीं खाना चाहिए। अगर दूसरे सोये हों तो अकेले जागना नहीं चाहिए । अकेले प्रवास नहीं करना चाहिए और अकेले धन कमाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। और भी - "रास्ते में डरपोक का साथ भी कल्याणकारी हो जाता है; साथ में रहे केकड़े ने ब्राह्मण की जान बचाई थी।" ने पूछा, “यह कैसे?” उसने कहा-- ... बटोही ब्राह्मण और केकड़े की कथा "किसी नगर में ब्रह्मदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था। एक समय काम से गांव के बाहर जाते हुए उसकी मां ने उससे कहा, "वत्स! अकेले क्यों जाता है,किसी साथी को खोज कर।"उसने कहा, 'मां, डर मत,रास्ते में कोई डर नहीं है; काम से मैं अकेला ही जाऊंगा।" उसका यह निश्चय जानकर पास की बावली से एक केकड़ा लाकर उसकी मां ने कहा, "वत्स! अगर तुझे जाना जरूरी ही है तो यह केकड़ा भी तेरा सहायक होगा। इसे लेकर तू जा।" माँ की

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