Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 304
________________ अपरीक्षितकारक भाग्यवश नष्ट हो गया । रह? और भी "अन्धी, कुबड़ा, तथा त्रिस्तनी राजकन्या, इन तीनों के काम भाग्य के अनुकूल होने से अन्याय से सिद्ध हुए ।” सुवर्णसिद्धि ने कहा, “यह कैसे ?” उसने कहा- अंधे, कुब्जे और त्रिस्तनी राजकन्या की कथा “उत्तरापथ में मधुपुर नाम का नगर है। वहां मधुसेन नाम का राजा था। उसे विषय सुख का अनुभव करते हुए त्रिस्तनी कन्या उत्पन्न हुई । उसका पैदा होना सुनकर राजा ने कंचुकी से कहा, “अरे, तू इस त्रिस्तनी कन्या को दूर वन में ले जाकर छोड़ दे, जिससे किसी को पता न लगे ।" यह सुनकर कंचुकी ने कहा, "महाराज ! यद्यपि त्रिस्तनी कन्या अनिष्ट करने वाली होती है फिर भी ब्राह्मण को बुलाकर पूछ लेना चाहिए, जिससे लोकपरलोक में निन्दा न हो । जैसे— "जो दूसरे बराबर पूछता है, सुनता है और हमेशा उसकी याद रखता है, उसकी बुद्धि सूर्य की किरणों से नलिनी की तरह बढ़ती है । और भी "जानकार आदमी को भी दूसरे से पूछते रहना चाहिए; बड़े राक्षस से भी पकड़े जाकर सवाल पूछने से ब्राह्मण छूट गया ।" राजा ने कहा, "यह कैसे ?” उसने कहा- राक्षसराज द्वारा पकड़े गए ब्राह्मण की कथा “देव ! किसी जंगल में चण्डकर्मा नामक राक्षस रहता था । जंगल में धूमले हुए उसे कोई ब्राह्मण मिला। राक्षस उसके कंधों पर चढ़कर बोला, *"अरे! आगे चल ।” ब्राह्मण भी मारे डर के उसे लेकर आगे चला | कमल जैसे मुलायम उसके पैर देखकर ब्राह्मण ने राक्षस से पूछा, “तुम्हारे

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