Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 302
________________ अपरीक्षितकारक तू क्यों मुझे इस तरह छोड़कर जाता है ? कहा भी है- "आपत्ति में पड़े मित्र को छोड़कर जो मित्र निठुराई करता है, वह कृतघ्न उस पाप से नरक जाता है, इसमें शक नहीं ।" सुवर्णसिद्धि ने कहा, “यह ठीक है, यदि पहुंचने लायक स्थान में अपना बस चलता हो । यह स्थान मनुष्य के लिए अगम्य है और तुझे छोड़ने की मुझमें ताकत नहीं है । और जैसे-जैसे चक्र घूमने की तकलीफ मैं तेरे चेहरे पर देखता हूं तो मेरा ऐसा मन करता है कि मैं झट चल दूं जिससे मेरे ऊपर कोई बला न आ पड़े । कहा है कि २८६ “हे बन्दर, तेरे मुंह की छाया से पता चलता है कि तुझे विकाल राक्षस ने पकड़ रखा है, इसलिए जो भागता है वही जीता है। " चक्रधर बोला -- “ वह कैसे ? " उसने कहा- विकाल राक्षस और बन्दर की कथा “किसी शहर में भद्रसेन नामक राजा रहता था। उसकी सब लक्षणों से युक्त रत्नवती नामक एक कन्या थी जिसे राक्षस हर ले जाना चाहता था और रात को आकर उसके साथ रति-क्रीड़ा करता था । पर मंत्रों से राजकन्या के शरीर की रक्षा होने से वह उसे हर नहीं सकता था। कंप इत्यादि अवस्थाओं से उसी समय कन्या राक्षस के पास आने की अवस्था का अनुभव करती थी । कुछ समय बीतने के बाद एक दिन राक्षस आधी रात में घर के कोने में खड़ा था । उस राजकन्या ने कहा, "सखी! देख यह विकाल मुझे इस समय रोज तंग करता है ? क्या इस बदमाश के रोकने का कोई उपाय है। यह सुनकर राक्षस ने सोचा, 'ऐसा लगता है कि मेरी ही तरह कोई विकाल नाम का दैत्य इसे हरने को रोज आता है, फिर भी उसे हर नहीं सकता । इसलिए घोड़े का रूप धरकर घोड़ों में रहकर देखूं कि उसकी सूरत और प्रभाब कैसे हैं। " ," इस तरह राक्षस घोड़े का रूप धर कर घोड़ों के बीच रहने लगा। उसके ऐसा करने पर एक दिन राजमहल में चोर घुसा । वह चोर सब घोड़ों को देखकर उस राक्षस रूपी घोड़े को सबसे अच्छा मानकर उस पर चढ़ गया । इसके

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