Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 300
________________ अपरीक्षितकारक २८७ से मैं दूर से ही जल पीऊंगा।" उसके ऐसा करने पर तालाब के बीच से गले में रत्नमाला पहने हुए एक राक्षस निकलकर उससे बोला, “अरे! जो तालाब में घुसता है वह मेरा खाना हो जाता है । तुझसे बढ़कर कोई धूर्त नहीं जो इस तरह पानी पीये। मैं तुझसे खुश हूं। अपनी मनचाही बात मांग।" बन्दर ने कहा, “तू कितना खा सकता है ?" राक्षस ने कहा, “सौ, हजार, लाख,जितने भी पानी में घुसें मैं उन्हें खा सकता हूं। बाहर तो सियार भी मुझे हरा सकता है।" बन्दर ने पूछा, “किसी राजा के साथ मेरी बड़ी दुश्मनी है । अगर तू मुझे यह रत्नमाला दे तो मैं सपरिवार राजा को बातों में भुलवाकर और लालच दिखलाकर तालाब में घुसाऊंगा।" उसकी विश्वसनीय बात सुनकर उसने उसे रत्नमाला देकर कहा , “अरे मित्र! जैसा ठीक हो वैसा करो।" बन्दर को रत्नमाला गले में पहने लोगों ने इधर-उधर घूमते देखकर पूछा,"अरे! बंदरों के सरदार, तुम इतने दिनों तक कहां थे, तुम्हें यह रत्नमाला जो तेज सूरज को भी मात करती है, कहां मिली ?" बन्दर ने कहा, "किसी जंगल में कुबेर ने एक गुप्त तालाब बनाया है। उसमें रविवार के दिन सूरज उगने पर जो नहाता है, कुबेर की कृपा से वह ऐसी रत्नमाला पहनकर बाहर निकलता है।" राजा ने यह सुनकर बन्दर को बुलाकर पूछा, “अरे सरदार! क्या यह सच है कि रत्नमालाओं से भरा कोई तालाब है ?" बन्दर ने कहा, “स्वामी! मेरे गले में पड़ी माला ही इस बात का विश्वास दिलाती है। अगर रत्न माला चाहता है तो मेरे साथ किसी को भेज, मैं उसे दिखला दूं।" यह सुनकर राजा ने कहा, “अगर यही बात है तो मैं खुद अपने साथियों के साथ चलूंगा, जिससे बहुत सी मालाएं मिलें।" बन्दर ने कहा, "ऐसा ही कर।" इसके बाद राजा के साथ रत्नमालाओं के लालच में उसकी पत्नियाँ और नौकर चल पड़े। राजा ने डोली पर चढ़कर बन्दर को भी प्रेम से गोद में ले लिया । अथवा ठीक ही कहा है - __"हे तृष्णा देवी, तुझे नमस्कार है , धनवानों को भी तू खराब काम में लगाती है और दुर्गम स्थानों में घुमाती है । और भी

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