Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 298
________________ अपरीक्षितकारक २८५ गया है और गुस्सेवर रसोईदार जो कुछ पाते हैं उससे इसे मारते हैं। कोई चीज न मिलने पर अगर वे जलती लकड़ी से मारेंगे तो उससे मारा यह मेढा आप-से-आप जल उठेगा । जलते हुए वह अस्तबल की ओर भागेगा और फूस से भरा अस्तबल जल उठेगा। फिर घोड़े भी आग से जलने लगेंगे । शालिहोत्र ने भी यह कहा है कि बन्दर की चरबी से घोड़ों की जलन शांत हो सकती है। ऐसा ही होगा इसमें संदेह नहीं," यह सोचकर अकेले में सब बन्दरों को बुलाकर उसने कहा "जहां मेढ़े के साथ रसोईदारों की लड़ाई होती है इसमें शक नहीं कि वहां बन्दरों का नाश होगा। "जिस घर में नित्य अकारण कलह हो उस घर को, जिन्हें अपनी जान प्यारी हो, छोड़ देना चाहिए। और भी "कलह से महल खतम हो जाते हैं, गाली-गलौज से मित्रता, बुरे राजा से राष्ट्र, और बुरे काम से राजाओं का यश।। सबके खतम होने के पहले ही हमें यह महल छोड़कर बन में चल देना चाहिए।" उसकी अविश्वसनीय बात सुनकर अभिमानी बंदरों ने हँसकर कहा, “अरे बुढ़ापे से आपकी अक्ल मारी गई है, जिससे आप ऐसा कहते है।" कहा भी है “विशेषकर बच्चे और बूढ़े का मुंह बिना दांत का होता है, नित्य लार __ बहती है और बुद्धि उभड़ती नहीं। हम सब राजपुत्रों के हाथों से दिये गए अमृत के समान, स्वर्ग के समान तरह-तरह के खानों को छोड़कर जंगल में कसैले , कड़वे, तीखे, नमकीन और रूखे फलों को नहीं खायंगे।" इस पर आँखें भरकर उसने कहा, “अरे मूर्यो ! तुम सब इस सुख का नतीजा नहीं जानते ? पारे के रसास्वादन की तरह यह सुख तुम्हारे लिए जहर हो जायगा। मैं स्वयं अपने कुल का नाश नहीं देख सकता, इसलिए मैं अभी जंगल में चला जाता हूं। कहा भी है "वे धन्य हैं जो मित्र को दुःख में पड़े, अपने ही जगह में दुःख, देश

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