Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 296
________________ अपरीक्षितकारक २८३ और दूसरे के दाम से खास काम चलाना । इससे तेरी जाति में वाहवाही होगी और तू अच्छी तरह से रहेगा । और तुझे इस लोक और परलोक दोनों ही के सुख मिलेंगे ।" यह सुनकर उसने खुशी-खुशी कहा, "साधु ! पतिव्रते साधु ! तूने बहुत ही ठीक कहा । मैं यही करूंगा । यही मेरा निश्चय है ।" इसके बाद उसने देवता से जाकर प्रार्थना की, “यदि आप मुझे मनचाहा वर देना चाहते हैं तो दो हाथ और एक सिर दीजिए।” उसके इतना कहते ही उसी दम उसके दो सिर और चार बांहें हो गई । खुशी-खुशी जब वह अपने घर आ रहा था तब लोगों ने उसे राक्षस मानकर लाठियों और पत्थरों से मार डाला । इसलिए मैं कहता हूं कि " जिसके पास अपनी बुद्धि नहीं होती, जो मित्र का कहना नहीं करता, वह मंथर बुनकर की तरह नष्ट हो जाता है ।" चक्रधर ने कहा, "यह ठीक है, सब लोग अश्रद्धेय आशारूपी पिशाचिनी के पास जाकर हँसी के पात्र होते हैं । अथवा किसी ने ठीक ही कहा है कि "भविष्यकाल के लिए जो असंभाव्य प्रचार करता है वह सोमशर्मा के पिता की तरह पीला होकर सोता है । ' सुवर्णसिद्धि ने पूछा, "वह कैसे ?" वह कहने लगा- हवाई किले बांधने वाले कल्पित सोमशर्मा के पिता की कथा “किसी नगर में कृपण नाम का ब्राह्मण रहता था । उसने भीख मांगे - सत्तू को खाकर बाकी से एक मटका भर दिया । उस मटके को खूंटी से टांगकर उसके नीचे अपनी खाट बिछाकर वह हमेशा एकटक देखा करता था । एक रात सोते हुए वह सोचने लगा, “जब यह घड़ा सत्तू से भर जायगा तब अकाल पड़ने पर इससे सौ रूपये पैदा करूंगा। उससे मैं दो बकरियाँ खरीदूंगा। उनके छः छः महिने पर ब्याने से बकरियों का झुंड खड़ा हो जायगा । इन बकरियों से गायें खरीदूंगा तथा गायों से भैंसे आदि और भैंसों से घोड़ियां । घोड़ियों के ब्याने पर घोड़े पैदा होंगे। उनके बेचने से बहुत सा सोना मिलेगा। सोने से चौमंजिला मकान बनवाऊंगा। इसकेबाद कोई ब्राह्मण मेरे घरआकर

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