Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 294
________________ अपरीक्षितकारक २८१ मेरा आश्रय यह पेड़ सदा रक्षा योग्य है, को मात्र के झोकों के आनन्द लेकर बड़े सुख से मैं यहां रहता हूं।" बुनकर ने कहा, "अब मैं क्या करूं? बिना काठ के सामान के मेरे बच्चे भूखे मरेंगे,इसलिए आप कहीं दूसरी जगह भागिए । मैं तो इस पेड़ को काटूंगा।" देवता ने कहा, "मैं तुझसे प्रसन्न हूं। अपना मनचाहा वर मांग ले जिससे यह पेड़वच जाय।" बुनकर ने कहा, “अगर यह बात है तो घर जाकर मैं अपने मित्रों और स्त्री से सलाह लेकर लौट आऊंगा।" देवता के ऐसा ही हो' कहने पर वह बुनकर खुशी-खुशी अपने घर लौटा और आगे चलकर गांव में घुसते हुए अपने मित्रं नाई को देखा और उससे देवता की बात कही , “अरे मेरे दोस्त ! मुझे कोई देवता सिद्ध हो गया है । बता उससे मैं क्या मांगू ? मैं यह तुझसे पूछने आया हूं।"नाई ने कहा, "भद्र ! अगर ऐसी बात है तो उससे तू राज्य मांग जिससे तू राजा हो और मैं तेरा मंत्री । हम दोनों सुख भोगकर परलोक का सुख भोगेंगे। कहा भी है कि "नित्य दानशील राजा कीर्ति पाकर उसके प्रभाव से पुनः स्वर्ग में देवताओं से होड़ करता है।" बुनकर ने कहा, “यह बात ठीक है, फिर भी घरनी से पूछू।" उसने कहा, “भद्र ! स्त्री के साथ सलाह करना शास्त्र के विरुद्ध है, क्योंकि वे कमअक्ल होती हैं। कहा भी है ___ "बुद्धिमानों को स्त्रियों को भोजन-वस्त्र देना, गहने देना, और ऋतुकाल में उनके साथ रति करना चाहिए; उनके साथ सलाहमशवरा नहीं करना चाहिए। "भार्गव का कहना है कि जहां स्त्री है, शत्रु हैं, वालकों की जहां प्रशंसा होती है, वह घर छीज जाता है। "पुरुष जब तक अकेले में स्त्रियों की बात नहीं सुनता तभी तक वह प्रसन्न मुख वाला और बड़ों की बातों पर प्रेम करने वाला होता है। "ये सब स्वार्थी स्त्रियां केवल अपने सुख में आसक्त होती हैं। अगर

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