Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 284
________________ परीक्षितकारक دی कर सकता है । " I " भैरवानन्द ने भी उनकी सफलता के लिए अनेक उपायों से चार सिद्ध वर्तियां बनाकर उन्हें दीं और कहा, "हिमालय की ओर जाओ। वहां पहुँचकर जहां बत्ती गिरे वहां बिना शक खजाना मिलेगा । वहां खोदकर तथा गड़ा धन लेकर वापस लौट आना ।" ऐसा करने के बाद जाते हुए उनमें से एक के हाथ से बत्ती गिर गई। उस जगह खोदने से तांबे की जमीन मिली । इस पर उसने कहा,“ भरपूर तांबा ले लो।” दूसरों ने कहा, “अरे बेवकूफ ! इससे क्या होगा ? बहुत सा तांबा भी हमारी गरीबी दूर नहीं कर सकेगा, इसलिए उठ हम आगे चलें ।" उसने कहा, “आप सब जाइए मैं आगे नहीं बढूंगा ।" यह कहकर भरपूर तांबा लेकर पहला लौट गया और बाकी तीनों आगे चले । थोड़ी दूर चलने के बाद अगुवा के हाथ से बत्ती गिर गई । खोदने पर वहां चांदी की जमीन निकली । उसने खुश होकर कहा, “खूब चांदी ले लो, अब आगे नहीं चलना चाहिए ।" उन दोनों ने कहा, अरे पीछे तांबे की जमीन, और आगे चाँदी की जमीन है, इसलिए इसके आगे जरूर सोने की जमीन होगी । अधिक होने पर भी इससे गरीबी तो मिटेगी नहीं । इसलिए हमें आगे जाना चाहिए ।" यह कहकर दोनों आगे को चले गए और उनका साथी अपनी ताकत के अनुसार चांदी इकट्ठा करके लौट गया । उन दोनों के जाते-जाते एक के हाथ से बत्ती गिर पड़ी। खुश होकर जब उसने जमीन खोदी तो सोने की जमीन मिली । उसने कहा, "मनमाना सोना ले लो । सोने से अच्छी कौनसी चीज हो सकती है ?" उस साथी ने कहा, "अरे मूर्ख ! क्या तू नहीं जानता कि पहले तांबा, उसके बाद चांदी और उसके बाद - सोना मिला ? इसके बाद जरूर जवाहरात होंगे जिनमें एक के मिलने से गरीबी दूर हो जायगी । इसलिए उठ हमें आगे बढ़ना चाहिए। यह वोझ ढोने से क्या फायदा ?” उसने कहा, " तू जा । मैं यहां ठहरकर तेरी बाट जोहूंगा ।" ऐसी बात तय हो जाने पर वह अकेला आगे बढ़कर गरमी के सूरज की रोशनी से संतप्त और प्यास से व्याकुल सिद्धि मार्ग को भूलकर इधरउधर भटकने लगा । बाद में भटकते-भटकते लोहू-लुहान शरीर वाले एक आदमी

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