Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 289
________________ ခုမှ पञ्चतन्त्र पंडित ने कहा--' लम्बी तानने वाला खत्म हो जाता है ।' यह कहकर खाना छोड़कर वह चल दिया। दूसरे को मैदे की बड़ी रोटी मिली। उसने कहा--'खूब लम्बा-चौड़ा बहुत नहीं जीता !' वह भी खाना छोड़कर भागा। ___ तीसरे को भोजन में बड़े खाने को मिले। उसने भी कहा'छिद्रों में बड़े अनर्थ होते हैं।' इस तरह वे तीन भूखे-प्यासे पंडित लोगों से हँसे जाकर अपने देश को लौट गए।" स्वर्णसिद्धि ने कहा, "लोक-व्यवहार न जानते हुए मेरे मना करने पर भी तू नहीं ठहरा, इसीलिए तेरी यह हालत हुई है। इसलिए मैं कहता हूं कि "सब शास्त्रों में कुशल होने पर भी लोकाचार न जानने से मूर्ख पंडितों की तरह सबकी हँसी होती है।" यह सुनकर चक्रधर ने कहा, “यह कोई सबब नहीं है । बड़े चतुर भी अभाग्य से दुःख पाते हैं और थोड़ी अक्ल वाले भी एक जगह मजे उड़ाते हैं। कहा है कि "अरक्षित भी यदि दैव से रक्षित है तो वह बच सकता है। अगर सुरक्षित भी भाग्य का मारा हुआ है तो उसका नाश होता है । वन में छोड़ा हुआ अनाथ भी जीवित रहता है और घर में सुखपूर्वक रक्षित का भी नाश हो जाता है।" और भी "सौ अक्ल सिर पर चढ़ा है, हजार अक्ल लटक रहा है, हे भद्र! मैं बेचारा एकबुद्धि साफ पानी में खेल रहा हूं।" सुवर्णसिद्धि ने कहा, "यह कैसे ?" उसने कहा -- . मच्छ की कथा "किसी तालाब में शतबुद्धि और सहस्रबुद्धि नाम के दो मच्छ रहते थे।

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