Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 290
________________ अपरीक्षितकारक उनकी एकबुद्धि नामक मेढक से दोस्ती हो गई। ये तीनों कभी ताल के किनारे कभी बालू पर बातचीत का मजा लेकर फिर पानी में घुस जाते थे । एक समय जब वे बातचीत कर रहे थे तब हाथों में जाल तथा सिर पर बहुत सी मछलियां लादे हुए कुछ धीवर सूरज डूबने के समय आए । उस तालाब को देखकर उन्होंने आपस में सलाह की, " इस तालाब ویت बहुत मछलियां हैं और कम पानी । इसलिए सबेरे हम सब यहां आयंगे ।" यह कहकर वे अपने घर वापस चले गए। मच्छ आपस में दुखी होकर सलाह करने लगे । इस पर मेढक बोला, "अरे शतबुद्धि ! क्या तूने धीवर की बात सुनी ? अब क्या करना चाहिए, भागना या ठहरना ? जैसा करना ठीक हो वैसी ही आज्ञा कर । यह सुनकर सहस्रबुद्धि ने हँसकर कहा, "अरे मित्र ! डर मत । बात सुनने ही से कोई नहीं डरता । कहा भी है 33 " सर्पों का, बदमाशों का, और खलों का मतलब नहीं गठता इसी से तो दुनिया खड़ी है । एक तो वे यहां आयंगे ही नहीं । अगर आयंगे तो मैं अपनी चतुराई से सबको बचा लूंगा, क्योंकि मैं तरह-तरह की पानी की चालें जानता हूँ ।" यह सुनकर शतबुद्धि ने कहा, “अरे तूने ठीक कहा, तू सच ही सहस्रबुद्धि है । अथवा ठीक ही कहा है " इस संसार में चतुर के लिए कोई चीज अगम्य नहीं है, क्योंकि चाणक्य ने अपनी बुद्धि से तलवार लिये हुए नन्दों को मारा था ।" और भी - " जहां वायु और सूर्य की किरणों की गति नहीं होती वहाँ भी बुद्धिमान की बुद्धि सदा बड़ी जल्दी से घुस जाती है । इसलिए केवल बात सुनने से ही बाप-दादों का घर छोड़ा नहीं जा सकता। कहा भी है "" खराब जगह भी जहां अपना जन्म हुआ हो वहां पुरुष को जो सुख मिलता है, वह सुख सुन्दर चीजों को छूने से मनोहर बने हुए स्वर्ग में भी नहीं मिलता ।”

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