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लब्धप्रणाश
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व्याकुल होकर बहुत से राज-सेवकों के साथ परदेस जाकर किसी राजा का सेवक हो गया। उस राजा ने उसके सिर पर गहरे घाव का निशान देखकर सोचा, “यह जरूर कोई वीर आदमी है, इसीलिए इसके सिर पर घाव हुआ “है।” इसके बाद राजा उसकी इज्जत करके दूसरे राजपूतों से भी अधिक उस पर कृपादृष्टि रखने लगा । राजपूत भी उस पर राजा की बहुत मेहरवानी देखकर उससे डाह करने लगे । पर राजा के डर से वे उसे कुछ कहते नहीं थे ।
एक दिन लड़ाई का मौका आ पहुँचने पर राजा सब शूरवीरों का सम्मान करने लगा । हाथी सजने लगे, घोड़ों पर साज पड़ने लगे और सिपाही तैयार होने लगे। ऐसे समय उस राजा ने कुम्हार से अकेले में जाकर समयानुसार प्रश्न किया, “हे राजपूत ! क्या लड़ाई में तेरे सिर पर यह चोट लगी थी ?” उसने कहा, “देव ! यह हथियार की चोट नहीं है । मैं जात का कुम्हार हूँ मेरे घर में बहुत से खपड़े पड़े थे, एक दिन शराब पीकर दौड़ते हुए मैं खपड़ों पर गिर गया, उसकी चोट लग जाने से इस तरह मेरा सिर विकृत दिखाई देता है ।" यह सुनकर राजा ने कहा, " अरे ! राजपूत की नकल करने वाले इस कुम्हार ने मुझे धोखा दिया है, इसलिए “इसे गरदनियां दो ।” उसके ऐसा कहने पर कुम्हार ने कहा, "ऐसा मत कीजिए, लड़ाई में मेरे हाथ का जौहर देखिए ।" राजा ने कहा, " तुझमें सब हैं फिर भी तू चल दे । कहा है कि
" हे पुत्र ! तू वीर है, विद्वान है, देखने में सुन्दर है, पर जिस खानदान तू पैदा हुआ है, उसमें हाथी नहीं मारा जाता ।" कुम्हार बोला, “यह कैसे ?” राजा कहने लगा-
सिंहनी और सियार के बच्चे की कथा
" किसी वन में सिंह का एक जोड़ा रहता था। एक समय सिंहनी को दो बच्चे हुए । सिंह रोज-रोज जानवरों को मारकर सिंहनी को देता था । एक दिन उसे कुछ नहीं मिला और वन में घूमते हुए सूरज डूब गया । घर