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मित्र-भेद
अधिक क्या कहूँ, सारा जगत् अनिष्ट के समुद्र में छीजने लगता है। "रोहिणी को शकट में स्थित चन्द्रमा की शरण में जाने वाले मनुष्य अपने बच्चे पकाकर खाने वाले होते हैं और सूर्य की किरणों को पानी की तरह पीते हैं।
इस तालाब में थोड़ा ही पानी है, इसलिए यह जल्दी ही सूख जायगा। तालाब के सूख जाने पर जिनके साथ मैं बढ़ा , सदा खेला, वे सब पानी के बिना मर जायंगे । उनका वियोग देखने में मैं असमर्थ हूँ, इसलिए मैंने यह प्रायोपवेशन (मृत्यु तक बिना भोजन का तप) किया है । आज छोटे तालाबों के सब जलचरों को उनके स्वजन बड़े जलाशयों में ले जा रहे हैं और मगर, गोह, शिशुमार, जलहाथी, इत्यादि प्राणी तो खुद चले जा रहे हैं । पर इस तालाब के जलचर तो पूरे निश्चित हैं, इस वजह से मैं और विशेष रूप से रो रहा हूँ, क्योंकि उनमें से एक का भी नाम-निशान न बचेगा।" ___उसकी बातें सुनकर केकड़े ने दूसरे जलचरों से भी उसकी बात कही। वे सब मछली-कछुवे इत्यादि भयभीत होकर बगले के पास आकर पूछने लगे , “मामा, क्या कोई उपाय है जिससे हमारी रक्षा हो सकती है ?" बगले ने कहा, “इस तालाब से थोड़ी दूर कमलों से सुशोभित और गहरे पानी से भरा हुआ एक तालाब है । वह चौबीस वर्ष पानी न बरसने पर भी नहीं सूख सकता। जो कोई मेरी पीठ पर चढ़ जाय मैं उसे वहाँ ले जाऊँगा।" उन सबका उस पर विश्वास हो गया 'पिता, मामा, भाई" "पहले मैं" "पहले मैं" ऐसा चिल्लाते हुए उसे चारों ओर से जानवरों ने घेर लिया। बदनीयत बगला बारी-बारी से उन्हें पीठ पर चढ़ाकर, तालाब के पास ही एक चट्टान पर ले जाकर और उस पर उन्हें पटककर भर-पेट खाकर फिर तालाब में वापस आकर , तथा जलचरों को झूठी-झूठी बातें सुनाकर उनका मनोरंजन करते हुए नित्य अपना आहार जारी रखने लगा। एक दिन केकड़े ने उससे कहा, "मामा ! मेरे साथ तेरी पहले-पहले प्रेमभरी बातें हुई, फिर तू मुझे छोड़कर क्यों दूसरे को ले जाता है ? इसलिए तू अभी मेरी जान बचा ।" यह सुनकर उस बदनीयत बगले ने