Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 227
________________ २१४ पञ्चतन्त्र घुसना चाहता हूं। मुझे आग से जलने से आप रोकना चाहते हैं।" रक्ताक्ष उसके मन की बात जानकर बोला , “तू आग में क्यों गिरना चाहता है ?" उसने कहा , “ तुम सबके लिए मेघवर्ण ने मुझे इस मुसीबत में डाला, इसलिए मैं बदला लेने के लिए उल्लू होना चाहता हूं।" यह सुनकर राजनीनि कुगल रक्ताक्ष ने कहा, “भद्र, तू स्वभाव से कुटिल है और बनावटी बात करने में चतुर है। उल्लू पैदा होने पर तू स्वभाव से कौआ ही . रहेगा । यह कहानी सुनी गई है-- - "सूर्य, मेघ, हवा और पर्वत जैसे पतियों को छोड़कर चुहिया अपनी . जाति से मिल गई । अपनी जाति छोड़ना बहुत मुश्किल है।" मंत्रियों ने कहा , “यह कैसे ?" रक्ताक्ष कहने लगा - चहे की लड़की के विवाह की कथा "ऊबड़-खाबड़ चट्टानों से गिरते हुए पानी की आवाज सुनने से डरी हुई मछलियों की उलट से पैदा हुए सफेद फेन से चितकबरी बनी हुई तरंगों वाली गंगा के तट पर जप, नियम, तप, स्वाध्याय , उपवास, यज्ञक्रिया और अनुष्ठान करने वाले , पवित्र तथा परिमित जल पीने की इच्छा रखने वाले, कंद, मूल-फल और सिवार खाकर शरीर को दुबला करने वाले, छालों से बने हुए कोपीन-मात्र वस्त्र पहने हुए तपस्वियों से भरा हुआ एक आश्रम था। वहां याज्ञवल्क्य नाम के एक कुलपति रहते थे। गंगा नहाते समय जैसे ही वे आचमन कर रहे थे , उनके हाथ में बाज के मुख से गिरी हुई एक चुहिया आ गई। उसे देखकर बरगद के पत्ते पर उसे रखकर, स्पर्श-दोष के कारण पुनः स्नान करके और प्रायश्चित्त इत्यादि करके उन्होंने उस चुहिया को अपने तप के प्रभाव से कन्या बना दिया और अपने साथ आश्रम में ले आए तथा निस्संतान अपनी पत्नी से कहा, “भद्रे! तुम्हें यह लड़की हुई है, इसे लो और यत्नपूर्वक इसका पालन करो।" ऋषि पत्नी द्वारा पालित होकर वह बारह वर्ष की हुई। उसे विवाह योग्य जानकर पत्नी ने पति से कहा , “हे पति ! क्या तुम्हें पता नहीं कि हमारी

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