Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan
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लब्धप्रणाश
२४१
यह कहकर गोह को उसने बिदा कर दिया ।
इसलिए हे दुष्ट जलचर! मैं भी गंगदत्त की तरह फिर तेरे घर कभी नहीं जाऊंगा।" यह सुनकर मगर ने कहा, “अरे मित्र! यह ठीक नहीं, मेरे घर जाकर तू मेरे कृतघ्नता के दोष को दूर कर, नहीं तो मैं तेरे ऊपर प्राण दे दूंगा ।" बन्दर ने कहा, "अरे मूर्ख ! क्या मैं लम्बकर्ण गधा हूँ जो आफत आई देखकर भी खुद वहां जाकर अपनी जान दे दूँ ?
"वह आया और सिंह का पराक्रम देखकर भागा, पर वह बिना कान और हृदय का मूर्ख था जो भागकर फिर से आया ।" मगर बोला, "भद्र ! वह लंम्बकर्ण कौन था ? आफत आई देखकर भी वह किस तरह मरा? यह सब मुझसे कह ।" बन्दर कहने लगा
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सिंह और गधे की कथा
“किसी जंगल में कराल केसर नाम का एक सिंह रहता था । हमेशा उसकी बात मानने वाला धूसरक नाम का सियार उसका नौकर था । एक समय हाथी के साथ लड़ाई लड़ते हुए सिंह के शरीर में बहुत से संगीन घाव लग गए, जिनसे वह एक कदम भी नहीं चल सकता था । उसके न चल सकने से भूखे रहकर धूसरक कमजोर पड़ गया । एक दिन उसने सिंह से कहा, “स्वामी ! भूख से व्याकुल होकर मैं एक कदम भी नहीं चल सकता। इसलिए मैं कैसे आपकी सेवा कर सकता हूं ?" सिंह ने कहा, “अरे जा, किसी जानवर की खोज कर जिसे मैं ऐसी हालत में भी मार सकूं।” यह सुनकर सियार खोजता हुआ किसी पास के गांव में जा पहुंचा। वहां उसने लम्बकर्ण नाम के एक गधे को तालाब के किनारे पतली दूब के अंकुरों को कष्टपूर्वक खाते हुए देखा। इस पर उसके पास जाकर सियार ने कहा, "मामा ! मेरा नमस्कार ग्रहण करो। बहुत दिनों के बाद दिखलाई पड़े । कहो, इतने कमजोर क्यों हो गए हो ? " इस पर उसने कहा, “अरे भांजे ! क्या कहूं? निर्दयी धोबी बड़े बोझ से मुझे तकलीफ देता है। एक मुट्ठी घास भी नहीं देता । मैं केवल धूल मिले हुए घास के अंकुर खाता हूं, फिर मेरा शरीरं कैसे पुष्ट

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