Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 253
________________ पञ्चतन्त्र "अरे निरर्थक रोने वाले! अपने साथियों का ही नाश करने वाला तू रोता क्यों है ? तेरे साथियों के नाश हो जाने पर अब तुझे कौन बंचायंगा? अब भी तू यहां से बाहर निकलने और उसे मारने का उपाय सोच।" इस पर भी गंगदत्त ने उसकी बात न मानी । कुछ दिनों में प्रियदर्शन ने सब मेढकों को खा लिया, केवल अकेला गंगदत्त बच गया । इस पर प्रियदर्शन बोला, “अरे गंगदत्त ! मैं भूखा हूं, सारे मेढक खत्म हो गए। तू मुझे यहां ले आया है, इसलिए मुझे कुछ खाना दे।" उसने कहा, “अरे मित्र! मेरे रहते हुए तुझे कोई चिन्ता नहीं करनी चाहिए। यदि तू मुझे बाहर भेजे तो मैं दूसरे कुएं में रहने वाले मेढकों को फंसाकर यहां ले आऊंगा।" उसने कहा, "भाई की जगह होने से तुझे मैं नहीं खा सकता। अगर तू ऐसा करेगा तो तू मेरे पिता के स्थान पर हो जायगा, इसलिए ऐसा ही कर ।" बहुत से देवताओं की मिन्नत मानता हुआ गंगदत्त भी यह सुनकर रहठ के घड़े के रास्ते उस कुएं के बाहर निकल गया। प्रियदर्शन उसके लौटने की बाट जोहते हुए पड़ा रहा । बहुत देरतक गंगदत्त के न आने पर प्रियदर्शन ने एक दूसरे खोखले में रहने वाली गोह से कहा, “भद्रे! मेरी थोड़ी सी मदद कर । गंगदत्त को तू बहुत दिनों से जानती है,इसलिए किसी तालाब में जाकर और उसको खोजकर उससे मेरा संदेशा कह, 'अगर दूसरे मेढक न भी आएं तो तू जल्दी से अकेला ही लौट आ। मैं तेरे बिना नहीं रह सकता । अगर मैं तेरे साथ कुछ बुरा व्यवहार करूं तो तुझे मेरी सौगंध है '।" उसके कहे अनुसार गोह ने भी गंगदत्त को जल्दी से खोजकर कहा, “भद्र गंगदत्त! तेरा मित्र प्रियदर्शन तेरी बाट जोह रहा है। इसलिए जल्दी चल । और वह तेरा नुक्सान नहीं करेगा, इसकी उसने कसम खाई है इसलिए तू बेधड़क चल।" यह सुनकर गंगदत्त ने कहा "भूखा आदमी कौनसा पाप नहीं करता। कमजोर आदमी निर्दयी हो जाते हैं। हे भद्रे! तू प्रियदर्शन से जाकर कह, गंगदत्त फिर उस कुएँ में नहीं आयेगा।"

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