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पञ्चतन्त्र साथ परलोक में ही मेरी मुलाकात होगी।' उसके ऐसा कहने पर मैं तेरे पास आया हूँ। आज उसके साथ तेरे लिए कलह में मेरा सारा समय बीत गया। इसलिए तू मेरे घर चल। तेरी भौजाई चौक पूरकर महीन वस्त्र और मणिमाणिक के गहने पहनकर दरवाजे पर वंदन वार बाँधकर उत्कंठा से तेरी राह देखती खड़ी है।" बन्दर ने कहा, "मित्र ! मेरी भौजाई ने ठीक ही कहा है। कहा है कि
" बुद्धिमान मनुष्य बुनकर-जैसे स्वार्थी मित्र को त्याग देते हैं जो लालच से दूसरे को ( बुनकर जिस तरह तार खींचता है उसी तरह ) अपनी तरफ खींचता है ( पर स्वयं उसके पास नहीं जाता )। और भी "देना और लेना, छिपी बात कहना और पूछना, खाना और खिलाना प्रेम के ये छ: प्रकार के लक्षण हैं।
पर हम तो वनचर हैं, तेरा घर पानी में है फिर मैं वहां कैसे जा सकता हूं। इसलिए तू मेरी भौजाई को यहां ले आ, जिससे उसे प्रणाम करके उसका आशीर्वाद ले सकू।" उसने कहा , “हे मित्र! समुद्र के उस पार एक रम्य किनारे पर मेरा घर है, इसलिए निर्भय होकर मेरी पीठ पर चढ़कर चल।" यह सुनकर उसने खुशी से कहा , “भद्र! अगर यही बात है तो फिर देर क्यों करता है ? जल्दी कर । मैं तेरी पीठ पर बैठता हूं।" ऐसा कह लेने के बाद मगर को अगाध समुद्र में जाते हुए देखकर डरे हुए बन्दर ने कहा, "भाई ! तू धीरे-धीरे चल, पानी के झकोरों से मेरा शरीर भीग गया है।" यह सुनकर मगर ने सोचा, गहरे पानी में पहुँचकर यह मेरे वश में आ गया है, मेरी पीठ से यह तिल-भर भी हट नहीं सकता। इससे मैं उससे अपना मतलब कहूँगा जिससे वह अपने इष्टदेवता का स्मरण करे। मगर ने कहा, "मित्र! मैं तुझे अपनी पत्नी की बात से विश्वास दिलाकर मारने के लिए लाया हूं, इसलिए तुझे अपने इष्टदेवता का स्मरण करना चाहिए।"
बन्दर ने कहा, "भाई ! मैंने तेरा क्या नुक्सान किया है जिससे तू मुझे