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मित्र-भेद
स्वयं मारा जाता है। फिर आपने तो उसकी मित्रता में सब राज-धर्म छोड़ दिया है और उसके अभाव में सेवक-गण उदास हो गए हैं । वह संजीवक घास-खोर है तथा आप और आपके सेवक मांस-खोर । अगर आपने अहिंसा का व्रत ले लिया है तो उन्हें मांस खाने को कहाँ मिलेगा ? मांसाहार के अभाव में वे आपको छोड़कर भाग जायंगे और उससे आप भी नष्ट हो जाइयेगा। फिर संजीवक की मित्रता से आपको कभी भी शिकार खेलने का विचार न होगा। कहा भी है
"जैसे भृत्य सेवा करते हैं वैसा ही मनुष्य हो जाता है, इसमें कोई
शक नहीं। और भी "तपे लोहे पर पड़े पानी का नाम भी नहीं रह जाता । वही पानी कमल के पत्ते के ऊपर पड़कर मोती जैसा आकार धारण कर शोभा पाता है। वही पानी स्वाति नक्षत्र में समुद्र में पड़ी सीपियों के कोख में पड़कर मोती बनता है ; प्रायः उत्तम
मध्यम और अधम सहवास से पैदा होते हैं। और भी "दुष्टों के संग-दोष से साधु भी दूषित होते हैं । दुर्योधन के साथ भीष्म भी गाय चुराने गए थे, इसीलिए अच्छे आदमी नीचों का संग नहीं करते। अतएव अच्छे लोग नीचों का संग करना मना करते हैं । कहा भी है
अज्ञात शील वाले को आश्रय नहीं देना चाहिए। खटमल के दोष से मंदविसर्पिणी जूं मारी गई।" पिंगलक ने कहा, "यह कैसे ?" दमनक कहने लगा--
जूं और खटमल की कथा "किसी देश में एक राजा के पास एक सुन्दर सोने का कमरा था।