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काकोलूकीय
अब काकोलूकीय नामक तीसरा तंत्र आरम्भ होता है जिसका पहला श्लोक है
"जिसके साथ पहले लड़ाई हुई हो, ऐसे शत्रु के साथ मित्रता भी हो जाने पर उसका विश्वास नहीं करना चाहिए ; उल्लुओं से भरी गुफा कौए द्वारा लगाई गई आग से जल गई। यह देखो : इस बारे में ऐसा सुनने में आता है -
दक्षिण जनपद में महिलारोप्य नाम का एक नगर है । उसके पास शाखाओं से भरा और घने पत्तों से ढका एक बरगद का पेड़ था। वहां मेघवर्ण नामक कौओं का राजा अपने अनेक कुटुंबियों के साथ रहता था। किलेबन्दी करके परिवार के साथ उसका समय बीतता था। अरिमर्दन नाम का उल्लुओं का राजा भी असंख्य उल्लुओं के परिवार के साथ पर्वत के गुफा रूपी दुर्ग में रहता था। रात होने पर वह हमेशा बरगद के चारों ओर चक्कर मारता था। वह उल्लुओं का राजा पहली दुश्मनी के कारण किसी कौए के मिलने पर उसे मार डालता था । इस तरह रोज-रोज आकर उसने बरगद के ऊपर के किले को बिना कौओं का बना दिया । अथवा यह होना ही था। कहा भी है