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मित्र-भेद
छिजाने वाले राजे छीजते हैं, इसमें कोई शक नहीं।"
उन पशुओं की बातें सुनकर भासुरक ने कहा ,"तुम सच कहते हो। पर अगर मेरे यहाँ बैठे रहते रोज मेरे पास एक जानवर नहीं आया तो निश्चय ही मैं सबको मार खाऊँगा।" सब पशु 'यही होगा' यह प्रतिज्ञा करके और बे-फिक्र होकर वे वन में निडर होकर फिरने लगे। हर दिन अपनी बारी पर एक जानवर सिंह के पास जाता था। इनमें से अगर कोई बूढ़ा, वैरागी, शोक-मग्न अथवा पुत्र और स्त्री के नाश से डरा होता था, तो वह दोपहर को सिंह के पास उसका भोजन बनकर हाजिर होता था। ___ एक समय जाति की बारी के अनुसार एक खरगोश की बारी आई। सब पशुओं के जोर देने पर भी व्याकुल हृदय से धीरे-धीरे चलते-चलते सिंह के मारने का उपाय सोचते हुए उसने एक कुआँ देखा । कुए पर जाकर उसने पानी में अपनी परछाई देखी । उसे देखकर उसने सोचा, यह बड़ी अच्छी तरकीब है । मैं अपनी बुद्धि से भासुरक को गुस्सा दिलाकर इस कुए में गिरा दूंगा।' इसके बाद थोड़े दिन रहते वह भासुरक के पास जा पहुँचा । समय बीत जाने पर भूख से चटकते गले वाले क्रोधित सिंह ने जीभ से अपने होठों के कोनों को चाटते हुए सोचा, 'ठीक सबेरे मैं भोजन के लिए वन को निर्जीव बना दूंगा।' उसके इतना सोचते-सोचते ही धीरे-धीरे खरगोश जाकर उसे प्रणाम करके आगे खड़ा हो गया । क्रोधित भासुरक ने उसको झिड़कते हुए कहा , “अरे नीच खरगोश ! एक तो तूं छोटे शरीर वाला है और दूसरे देर करके आया है, इसलिए तेरे इस अपराध के कारण तुझे मारकर सबेरे सब पशुओं को मार डालूंगा।" खरगोश ने विनय के साथ जवाब दिया, “इसमें न तो मेरा अपराध है, न दूसरे जीवों का; देर होने की वजह तो आप सुनिए।"सिंह ने कहा, "जल्दी से कह, इसके पहले के तू मेरे दाँतों के बीच न समा जाय।" खरगोश ने कहा , “स्वामी ! जाति की बारी से मुझे छोटा निवाला जानकर सब पशुओं ने मिलकर मुझे पाँच खरगोशों के साथ भेजा था। बाद में जब मैं आ रहा था तो उसी बीच में एक दूसरे सिंह ने अपनी माँद से निकलकर हमसे कहा, "क्यों रे ! तुम