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पञ्चतन्त्र
"लहराते अयाल से विकट मुख वाले सिंह, अधिक मद-राशि से सुशोभित हाथी, बुद्धिमान पुरुष, और लड़ाइयों में वीर सिपाही, स्त्रियों के पास परम कापुरुष बन जाते हैं। "पुरुष आशिक नहीं है, जब तक स्त्रियाँ यह जानती हैं, तब तक
वे पुरुष की मनचाही बात करती हैं। पर उन्हें काम के जाल में फंसा देखकर मांस निगले हुई मछली की तरह उसे बाहर निकाल फेंकती हैं। "समुद्र की लहरों-जैसी चंचल स्वभाव वाली, तथा संध्याकाल के बादलों की तरह क्षणिक ललाई वाली स्त्रियाँ अपना काम हो जाने के बाद बे-काम मनुष्य को निचोड़े गए रस-रहित अल्ते की तरह फेंक देती हैं। "झूठ, साहस, माया, मूर्खता, अत्यन्त लालच, अपवित्रता तथा निर्दयता--ये स्त्रियों के स्वभावगत दोष होते हैं। "मोहती हैं, मद उत्पन्न करती हैं, हँसी करती हैं, तिरस्कार करती हैं, खेलती हैं, दुःख करती हैं, ऐसी टेढ़ी नजरों वाली स्त्रियाँ मनुष्यों के भोले हृदय में घुसकर क्या-क्या नहीं करतीं? "भीतर तो जहरीले होते हैं, लेकिन बाहर से सुन्दर दीखते हैं,
ऐसे गुंज-फलों के समान स्त्रियों की किसने रचना की है ?" इस तरह सोचते हुए उस संन्यासी की रात बड़ी मुश्किल से कटी। नकटी दूतिका ने भी अपने घर जाकर सोचा, "अब क्या करना चाहिए. और इस बड़े भेद को किस तरह ढकना चाहिए।" वह इसी तरह सोच रही थी कि उसका पति, जो काम के लिए रात में राज-महल गया था, सवेरे ही अपने घर लौटकर नागरिकों की हजामत बनाने के लिए जाने की उतावली से देहली पर ही खड़ा होकर उससे कहने लगा, "भद्रे ! जल्दी से छुरे की पेटी ला, जिससे मैं हजामत बनाने जाऊँ।" नकटी नाइन ने, जो अपना काम बनाने की ताक में घर में ही बैठी थी, छुरे की पेटी में से एक छुरा निकालकर नाई की तरफ फेंका।