Book Title: Panchashak Prakaranam
Author(s): Dharmratnavijay
Publisher: Manav Kalyan Sansthan
View full book text
________________ 263 परिशिष्टम्-१ गाथा-३२-४२ पढमुच्चारणमेत्ते, विष्णुप्पवेसो हवेज्ज सामइए / एयस्स सव्वहा जइ, ता नंदीणुयोगदाराणं // 20/32 // तयणुप्पवेसओ च्चिय, तवचरणं नेय जुज्जइ विभिन्नं / दीसइ य कीरमाणं, जोगविहीए य भिन्नत्तं // 20/33 // किंचाभिन्नत्ते सव्वहा वि सामाइयाउ एयस्स / काऊण पंचमंगलमिच्चाइ अणुचियं वयणं // 20/34 // इय भेयपक्खमणुसरिय जइ तवो कीरई नमोक्कारे / तो को दोसो नंदणुओगद्दारेसु वि हविज्जा // 20/35 // इरियावहियाईयं, सुयं पि आवस्सयस्स करणम्मि / अणुपविसइ तम्मि तयन्नया य भिन्नं हि तेणेव // 20/36 // भत्ते पाणे सयणासणाइ सुत्तं पि जायइ कयत्थं / तिन्नि वि कड्डइ तिसिलोइय थुइ त्ति इच्चाइ सुत्तं पि // 20/37 // आवस्सए पवेसो, जइ एसो सव्वहा वि य हवेज्जा / तो पि हु पढणं एसिं, सव्वेसिं कह घडिज्ज त्ति // 20/38 // जं च इयरेयरासय, दूसणमेवं च वुच्चइ इमाण / पाढेण विणा न तवो, तवं विणा नेव पाढो त्ति // 20/39 // तं पि हु अदूसणं जह, पव्वइउमुवट्ठियस्सऽणुन्नायं / सामाइयाइयाणं, आलावगदाणमतवे वि // 20/40 // एवं जइ पढिएसु वि, नवकाराईसु ताणमुवहाणं / सविसेसगुणनिमित्तं, कारिज्जइ को णु ता दोसो // 20/41 // नियगमइविगप्पियं पि, हु कारिज्जइ मोक्खदंडयाइ तवं / सत्थुत्तं पि निसिज्झइ, उवहाणं ही महामोहो // 20/42 //

Page Navigation
1 ... 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355