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नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स
भूमिका हिन्दी में पालि साहित्य सम्बन्धी अध्ययन का अभी सूत्रपात ही हुआ है। कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों के अनुवादों के अतिरिक्त पालि साहित्य सम्बन्धी कार्य हिन्दी में प्रायः बहुत कम ही हुआ है । अनुवाद भी प्रायः विनय-पिटक और सुत्त-पिटक के कुछ ग्रन्थों के ही हुए हैं। सुत्त-पिटक के भी संयुत्त और अंगुत्तर जैसे निकाय अभी अनुवादित नहीं हो पाए हैं। खुद्दक-निकाय के भी अनेक ग्रन्थ अभी अनुवादित होने को बाकी हैं। सम्पूर्ण अभिधम्म-पिटक पर तो अभी हाथ ही नहीं लगाया गया। इसी प्रकार सम्पूर्ण अनपिटक साहित्य, जिसमें बुद्धदत्त, बुद्धघोष और धम्मपाल की अट्ठकथाएँ और अन्य विशाल साहित्य सम्मिलित है, अभी अनुवाद की बाट देख रहा है । इस साहित्य में से केवल 'मिलिन्द-प्रश्न' और 'महावंश' तथा कुछ अन्य अल्पाकार ग्रन्थ ही हिन्दी रूपान्तर ग्रहण कर सके हैं। 'विसुद्धिमग्गो' जैसा ग्रन्थ अभी हिन्दी जनता को अविदित है। ऐसा लगता है कि एक महान् उत्तराधिकार से हम वंचित हो गए हैं । जिस दिन अवशिष्ट पालि साहित्य हिन्दी रूपान्तर ग्रहण कर लेगा, उस दिन भारतीय मनीषा को एका नड़े स्फूर्ति मिलेगी । उसकी आध्यात्मिक प्रेरणा के स्रोत, जो आज सूखे पड़े हैं, पुनः आप्लावित हो उठेंगे, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं। ___ जो दशा पालि ग्रन्थों के अनुवादों की है, वही उनके मूल पाठों के नागरी मंस्करणों की भी है। सन् ३७ में पुण्यश्लोक बर्मी भिक्षु उत्तम ने भिक्षुत्रय, महामति राहुल सांकृत्यायन, भदन्त आनन्द कौसल्यायन और भिक्ष जगदीश काश्यप द्वारा सम्पादित खुद्दक-निकाय के ११ ग्रन्थों को नागरी लिपि में प्रकाशित किया था। तब से बम्बई विश्वविद्यालय की ओर से निदान-कथा, महावंस, दीघ-निकाय (दो भाग), मज्झिम-निकाय (मज्झिम-पण्णासक), थेरीगाथा,