Book Title: Niti Dipak Shatak Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मठिया भ्रम को त्याग कर विषयमंत्रन में जीवन बिताने वाले मनुष्य की मुखनाते पीयूषघटं विहाय मननं गृह्णन्ति हालाहलं, ते तिष्ठतिशिलातले जलनिधो त्यक्त्वान्तिकस्थां नरिम स्वारामे निवपन्निकण्टकतम्नुन्मूल्य कल्पहन. ये धर्म परिहृत्य लब्धप्रनिशं धावन्नि कामाशयाः।।६।। ___ जो मूर्ख धर्म को त्यागकर निरन्तर विषयभाग में लीन रहते हैं. त अमृत घट को छोड़कर हलाहल विष को ग्रहगा करते हैं, समुद्र पार करने के लिए पास में ग्वीहई नावको छोड़ कर शिलापर सवार होने हैं , तथा कल्पवृक्ष को उखाड़कर अपने बीच में कांटे के वृक्ष लाने संसार समुद्र को पारकरने के लिए धर्म और गुरु की आवश्यकता मंसाराम्बुनिधो मनोरथशतोडल्लनरङ्गाकुले, ___दाराऽपत्यकुटुम्बनऋबहुले धर्मस्वरूपा नरिः। तिष्ठन्त्यत्र समाधिशान्तमनसोये मानवाः प्रमत स्ते पारं द्रुतमेव यान्ति निकटे चेत्कर्णधारो गुरुः मंसार समुद्र के समान है, इसमें अनेक मनोरथ रूपी महाभयानक लहरें उठाकरती हैं, और यह स्त्री पुत्रादि कुटुम्बरूपी मगर घड़ियाल आदि हिंसक जलचर जन्तुओं से भरा हुआ है। इस संमार समुद्र को पार करने के लिए एक धर्मम्पी नौका है । जो मनुष्य टुम मंमार में For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56