Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

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Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नीतिदीपिका अन्धा पदार्थ देखने की, चंचलचित्तत्वाला ध्यान की इच्छा करता हुआ हास्य का पात्र होता है। वैसे ही गुणवान् पुरुषों की सङ्गति के विना मोक्षमुख की इच्छा करने वाला दुर्बुद्धि भी हास्य का पात्र होता है ।। ६५ ।। (३५) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यो नित्यं कुमति विहन्ति सततं मोहं विभिन्ते हृदा, गृह्णीते विनयं रतिं च कुरुते धत्तं गुणानां ततिम् । कीत्तिं वर्द्धयति व्यपोहति गतिं दृष्टां प्रसृते शमं, किं नैवं गुणिसङ्गमां जनयति स्वाभीष्टकार्ये नृणाम् ॥ गुणवानों की सङ्गति, कुमति और हृदय के माह को दूर कर ती है । विनय रति प्रेम आदि अनेक गुणों को उत्पन्न करती है । यश की वृद्धि और दुर्गति का नाश कर शान्ति उत्पन्न करती है । ऐसा कौन सा मनुष्यों का इष्ट कार्य है जिसको सत्पुरुषों की सङ्गति उत्पन्न नहीं कर सकती ॥ ६६ ॥ प्राप्तुं सन्मतिमापदां तनिमपाकर्तुं विहर्तुमृती, लब्धुं कीर्त्तिममाधुतां जरयितुं धर्म समासेवितुम् । रोद्धुं पापमुपार्जितुं नियमतः स्वर्मोक्षलक्ष्मी शुभां dri वासि तर्हि मित्र ! गुणिनां सङ्गं सदाङ्गीकुरु ॥ हे मित्र ! यदि बुद्धि प्राप्त करने की, आपदा दूर करने की, सन्मार्ग पर चलने की. कीर्ति प्राप्त करने की, दुर्जनता का नाश करने की, 'सेवन करने की. पाप रोकने की, स्वर्ग और मोक्ष की For Private And Personal Use Only

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