Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नीतिदीपिका (३३) करने के लिए तत्काल मृत्यु देने वाले ऐसे उग्र जहर को अपने पेट में रख लिया है । कल्याण की इच्छा रखने वाले को दुर्जनता कभी न करनी चाहिए ॥६१॥ यत्कीर्ति प्रविनाशयत्यतितरां सूते विपद्धेदना हन्ति स्वार्थमथो विवेकविनयौश्रेयःसुखं सन्मतिम् । तादृक्षं कुमतिर्जनो वहति यदौर्जन्यमात्मापहं, धान्ये तत्क्षतिदं करोति दहनं साध्येऽम्बुसंसेचनात् ॥ जो कीर्ति का बिल्कुल नाश कर देती है । विपत्तियों और वेदनाओं को उत्पन्न करती है । स्वार्थ का भङ्ग करती है । विवेक विनय कल्याण सुख और उत्तम बुद्धि का उच्छेद करती है । आत्मा का बात करने वाली ऐसी दुर्जनता को जो मनुष्य धारण करते हैं , वे मनुष्य जल सींचने से उत्पन्न होने वाले धान्य में उसको जलाने वाली अग्नि का प्रयोग करते हैं ॥६२॥ मौजन्यं भजतां वरं परिभवो दौर्जन्यदोषार्जिता रम्या नो सुखसम्पदः सुविभवा विद्युच्छटाचञ्चलाः। आयत्यात्महितं विभाति सहजं रम्यं कृशत्वं नृणां, नो देहे परिणामकालविरसा शोफोड़वा पीनता ॥ सज्जनता से यदि दरिद्रता बनी रहती हो तो भी सजनता ही धारण करनी श्रेष्ठ है । लेकिन दुर्जनता से मुख देनेवाली बिजली के चमत्कार के समान क्षणभङ्गरसम्पत्ति का उपार्जन करना ठीक For Private And Personal Use Only

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