Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

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Page 50
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेठियाग्रंथमाला (४८) से संसार में पून्य हुऐ हैं । अतएव हे मित्र. संसार की वृद्धि करने वाले दूसरे सब कामों को छोड़ कर इस वैराग्य का ही पालन करा कालोऽयं दिनमामवर्षविधया लोकत्रयीभक्षको, याता यान्ति च कालचक्रविवरं यास्यन्ति लोकाः सदा। लक्ष्मीस्तुङ्गतरङ्गभङ्गचपला विद्युच्चलं जीवनं, तस्मात्सौम्यजनाः समाश्रयत भो वैराग्यमेवाचलम्॥ काल दिन सहिन और पी द्वारा तीन लोक के पढार्थी का भक्षण करता है। समस्त प्राणी इस कालचक्रमें गिरकर नाशको प्रान हुए हैं हो रह हैं और होगे । लक्ष्मी जल की तरङ्गक समान और जीवन बिजली के समान चंचल है । अतएव ह शान्तपुरुषों ! स्थिर वैराग्य को धारण करो ॥६॥ भोगान्कृष्णभुजङ्गभोगविषमात्राज्यं रजासन्निभं, बन्धून्बन्धकरान्कषायनिचयं हालाहलानोपमम् । भूति भूतिसमां तृणेन सदृशं स्त्रैणं विचिन्त्य द्रुतमासक्तिं परितस्त्यजन्प्रवृणुते मोक्षं विरागी यतः ॥ इन्द्रियों के विषय काले सांप के समान, गज्य धूल के समान, बन्धुलोग बन्ध के कारगा, क्रोबादि कपाय विष के समान, ऐश्वर्य भस्म के समान तथा स्त्रीसमूह तृण के समान है, ऐसा समझकर For Private And Personal Use Only

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