Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सठियाग्रंथमाला (५०) सद्भक्त्याऽहत आदरेण विनमन्कुर्वन् तदीयां पुन:, पूजामारचयन् तदीयवचसि श्रद्धाभरं भावयन् । तद्वयाख्यातपदार्थभारमनिशं चित्तेन संभावयन् , रागद्वेषपटच्चरैः परिहृतं स्वं याहि मोक्षायनम् ॥ अरिहन्त भगवान् को आदरपूर्वक नमस्कार कर भक्तिपूर्वक पूजा करे, तथा इनके वचनों का विश्वास कर आगम में वर्णन किये गये तत्त्वों का चित्त में मनन करे, और गगद्वेष रूपी चोरों में आत्मा की रक्षा करता हुआ मोक्ष मार्ग पर गमन करे ॥ ६५ ॥ कीर्तिर्दिनु यथाऽनिशं प्रसरति प्रोद्यत्क्षपेशप्रभा तुल्या स्फातिमुपैति सद्गगततिः स्वान्यादा कुवती । वृद्धिं याति यथा सुधर्मविटपी कर्मातपक्षादकच्छ्रद्धासज्जलमेचिताऽध्वनि तथा कार्य सदा वर्तनम्।। जिस मार्ग पर चलने स चन्द्रमा की कान्ति के समान कीर्ति निरन्तर बढ़ती रहे, अपने और दूसर की उन्नति करनेवाले गुण प्रतिदिन उन्नत होते जावें तथा श्रद्धारूपी जल से सींचा हुआ कर्मसंताप को दूर करनेवाला वर्म रूपी वृक्ष बढ़ता रहे, उसी मार्ग पर सदा चलना चाहिये || ६६ ॥ हस्ते दानमनन्तपुण्यफलदं मूर्ध्नि प्रणामो गुरोः, वाणी सत्ययुता मुखे श्रवणयोः सत्यं श्रुतं शाश्वतम्। स्वान्ते वृत्तिरभेदभावलसिता बाहाः शुभं पौरुषं, चैश्चर्येण विनाप्युदारमनसामेतन्महामण्डनम् ॥९॥ For Private And Personal Use Only

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