Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

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Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेठियाप्रन्थमाला (४६) हे साधो ? यह भावना मंसारसमुद्र में पार करने के लिए नाव के समान है। शांति तथा सन्तोष उत्पन्न करने वाली और काम ग्नि को शान्त करने के लिए मेघ मंडल के समान है । मोक्षरूपी मार्ग पर चलने के लिए अश्व के समान तथा उन्मत्त इन्द्रियरूपी मृग को वश में करने के लिए दृष्ट जाल के समान है और गगादि दोध रूपी पर्वत का नाश करने के लिए वज्र के समान है । अतएव हे मुने ! दूसरी सब झंझटों को छोड कर धर्म अर्थ काम और मोक्ष को देने वाली इस भावना का सेवन करो ॥ ८७ ॥ दत्तो वित्तचयः सदाभ्यमनती विज्ञातमहडचः, निर्विनेन कृताः क्रियाः खलु महीशय्या ममामेविता तप्तं तीव्रतपः सुचीर्णमनघं सवृत्तमत्यादरान स्वान्ते यदि भावना शुभतरा नयेष मो वृथा। ॥८८॥ जिसने बहुत द्रव्य का दान किया । निरन्तर अभ्यास करके जिनागम का ज्ञान प्राप्त किया। सम्पूर्ण क्रियाओंका निर्विघ्न पालन किया। पृथ्वी पर शयन किया । वार तपस्या तपी । निटोप चारित्र का बडे प्रेम से आचरण भी किया । यदि उसने अपने हृदय में शुभ भावना का चिन्तन नहीं किया तो उसकी उक्त सब क्रिया निकल हैं ॥८८॥ For Private And Personal Use Only

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