Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

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Page 38
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेठियाग्रंथमाला लक्ष्मी को पाने की तुम्हारी इच्छा है तो तुम हमेशा सत्सङ्गति करो ॥ ६७ ॥ दुर्जनसङ्गति से हानि-- माहात्म्याम्बुजमण्डले तुहिनति स्वोत्कर्षकालाम्बुदव्यूहे वातति नागति प्रियदयारामे च बज्रायते । क्षेमारोग्यसुखोदयादिशिखरे ध्वान्तायते यः सदा, सोऽयं दुर्जनसङ्गमोन विबुधैःसेव्यः कदापि क्वचित् ॥८॥ दुर्जन का सङ्ग महिमारूप कमलसमूह को जलाने के लिए बर्फ के समान, आत्मोन्नतिरूप मेघमण्डल को उड़ाने के लिए पवन के समान, परमप्रिय दयारूप वाटिका को नष्ट करने के लिए हाथी के समान, कल्याण आरोग्य और मुख की उत्पत्तिरूप पर्वतके शिखर को तोड़ने के लिए वज्र के समान, उत्तममार्ग के दर्शन को रोकने केलिए अन्धकार के समान है । अत: बुद्धिमान् कभी दुर्जन का सङ्ग न करे ॥ ६८ ॥ इन्द्रियविजय से लाभआत्मानं विषमाध्वना गमयितुं यो मत्तवाजीयते, कार्याकार्यविवेकजीवहरणे यः क्रुद्धसयते । पूर्वोपार्जितपुण्यशालदहने प्रोद्यद्दवाग्नीयते, तंतीव्राक्षगणं विलुप्तनियम जित्वा सुखी त्वं भव ।। जो इन्द्रियाँ आत्मा को कुमार्ग में लेजाने के लिए दुष्ट घोड़े के समान हैं, कर्त्तव्य अकर्तव्य के ज्ञान रूप प्राणों का हरण करने के For Private And Personal Use Only

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