Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नीतिदीपिका लिए क्रोध को प्राप्त हुए सांप के समान हैं। पूर्वोपार्जित पुण्यरूप वृक्ष को जलाने के लिए दावाग्नि के समान हैं । हे भद्र पुरुषो ! बत नियम का लोप करने वाली इन बलवती इन्द्रियों को जीतकर सुखी बनो ॥६६॥ संहर्तुं नययुक्तपद्धतिमलं ज्ञानं विवेकोद्भवं, __ शीघ्रं नाशयितुं विधातुमनिश सन्तापदुःखव्रजम् । निर्मातुं सततं कुबुद्धिलहरी संसारमूलं च वै, यः शक्नोति बलात्तमिन्द्रियगणं सद्यो वशं प्रापय ॥ ___ जो इन्द्रियाँ नीतिमार्ग और जड़ चेतन के भेदज्ञान को तत्काल नष्ट करने में समर्थ हैं। निरन्तर मानसिक और शारीरिक दुःख को उत्पन्न करने में, प्रवीण हैं । हमेशा कुबुद्धि रूप जहर की लहर और संसार के दृढ़ मूल कारण राग द्वेष को आविर्भूत करने में पूर्ण समर्थ हैं । इस लिए हे भव्य पुरुषो . इन इन्द्रियों को अति शीघ्र वश में करो ॥७॥ उन्मार्ग नयति प्रकाममखिलान्बध्नाति मोहबजे, दत्तेऽलं विपदः करोति नितरां सबोधशून्यं जनम् । नित्यं क्लेशयति प्रमादबहुलान्संसारदावानले, मत्तो योऽक्षगणस्तमेव सततं वश्यं करोत्वप्रियम् ॥ ये मदोन्मत्त इन्द्रियाँ समस्त संसारी जीवों को कुमार्ग में लेजाती और मोहजाल में फँसाती हैं । बड़े २ दुःख देती और प्राणियों को सद् ज्ञान शून्य बना देती हैं । तथा प्रमादी जीवों को संसार रूपी For Private And Personal Use Only

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