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सेठियाग्रंथमाला
(४०)
पर भी खेदखिन्न नहीं होते हैं। बड़ा आश्चर्य है कि विद्वान् पुरुष भी धन के लिए बड़े २ कष्ट सहते हैं ॥७॥ या श्रीः सर्पति नीचमम्बुधिपयःसङ्गादिवेहाब्जिनी
संसर्गादिव कण्टकाकुलपदा धत्ते पदं न क्वचित् । या हालाहलसन्निधेरिव नृणां देहाद्धरेच्चेतना, ग्राह्य धर्मपदे नियोज्य सुजनैस्तस्याः फलं दुर्लभम् ॥
ऐसी लोकोक्ति है कि लक्ष्मी समुद्र से निकली है । समुद्र में जल कमलिनी और विष भी रहता है । जल की सङ्गति करने से यह लक्ष्मी भी नीच पुरुषों के पास जाती है, अर्थात् जैसे जल नीचे की
ओर जाता है वैसे ही लक्ष्मी भी नीच पुरुषों के पास जाती है । कमलिनी के संसर्ग से लक्ष्मी के पैर में कांटा लग गया, इस लिए यह कहीं पर पाँव स्थिर नहीं रखती है । विष के साथ रहने से यह भी मनुष्यों की चेतना-ज्ञानशक्ति को हर लेती है । इस लिए सज्जनों को चाहिए कि इस लक्ष्मी को धार्मिक कार्यों में लगा कर इससे अनुपम लाभ उठावें ॥७६॥
दानमहिमा-- चारित्रं तनुते ददाति विनयं बोधं नयत्युन्नति,
शान्ति पुष्यति सत्तपः प्रबलयत्युल्लासयत्यागमम् । पुण्यं पल्लवयत्यघं दलयति स्वर्गापवर्गश्रियं, दत्ते पूतधनं सुपात्रनिहितं स्वाभीष्टसौख्यप्रदम् ।।७७॥
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