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सैठियाप्रन्यमाला
(३२)
का भङ्ग करने के लिए. हाथी के समान है । यह लोभ सत्य और सच्चरित्र का नाश करने में प्रवीण विपत्ति को जन्म देने वाली पृथिवी तथा स्वर्ग का द्वार बन्द करने वाला किंवाड है , इस लिए आत्महितेच्छु बुद्धिमान् इस लोभ का बिल्कुल त्याग कर दें ॥५६॥
सन्तोष से लाभ-- जाता देवगवी सदा सुरतरुस्तेषां गृहे संस्थितश्चिन्तारतमुपागतं निजकरे सान्निध्यमातो निधिः । तबश्यं निखिलं जगच सुलभाः स्युर्मोक्षसत्सम्पदो, ये सन्तोषमनल्पदोषदहने मेघं सदा बिभ्रति ।। ६० ॥
सन्तोष महादोषरूप अग्नि को शान्त करने के लिए मेघ के समान है। इस को जो मनुष्य धारण कर लेते हैं, उन के घर में मानो कामधेनु और कल्पवृक्ष उत्पन्न हो जाते हैं । चिन्तामणि रत्न उन के हाथ में, तथा सम्पूर्ण धनभण्डार उन के समीप में आजाता है, और सम्पूर्ण संसार उन के वश में हो जाता है ॥ १० ॥
दुर्जनता की निन्दाक्षिप्तः पाणिरहेमुखे वरतरं कुण्डे ज्वलहिके,
यज्झम्पापतनं परं विरचितं द्रागेव मृत्युप्रदम् । निःक्षिप्तं गरलं वरं स्वजठरे यद्रोगसंशान्तये, लब्धव्यं न कदापि दुर्जनपदं श्रयापदं वाञ्छता ॥३१॥
जिसने दुर्जनपना धारण किया, उसने मानो साप के मुँह में हाथ देदिया, जलते हुए अग्निकुण्ड में छलांग मारली, रोग को शान्त
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