Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नीतिदीपिका और मित्र में शत्रुबुद्धि, एवं विष में अमृत की भ्रान्ति होती है । मर्थात् उनको सब उलटा ही प्रतिभास होता है ॥१६॥ सबोधामृतनिझराय विमलज्ञानप्रदीपाङ्करै नष्टाज्ञानमहान्धकारततिने कल्याणसम्पादिने । दुष्कौघमहाविषद्रुमवनच्छेदे कुठाराय तच्छ्रीमज्जैनमताय दुष्टजयिने नित्याय नित्यं नमः॥ ___ सम्यग्ज्ञानरूप अमृत के मरने के समान,निर्मल ज्ञान रूप दीपक की किरणों से महान् अज्ञानान्धकार को नाश करने वाले, कल्याण के कर्ता, तथा दुष्कर्मों के समूहरूप विषवृक्षों के वन को काटने के लिए कुठार के समान, एवं कुवादियों को जीतनेवाले सनातन श्रीमज्जैनधर्म को मैं सदा नमस्कार करता हूं ॥२०॥ . संघ की महिमामेरू रसचयस्य शुद्धगमनं तारागणानां सतां, नाकः कल्पमहीरुहां वरसरः श्वेतच्छदानां ततेः। अम्भोधिः पयसां विधुश्च महसां स्थानं गुणानामसावित्यालोच्य विधीयतां भगवतः संघस्य सेवाविधिः ॥२१॥ जैसे रत्नों का उत्पत्तिस्थान मेरु पर्वत, तारागण का भ्रमणस्थान आकाश, कल्पवृक्षों की निवासभूमि स्वर्ग, कमलपुष्पों का उत्पत्तिस्थान सरोवर, जल का आधार समुद्र तथा किरणों का आश्रय चन्द्रमा है, इसी तरह समस्त गुणों का आश्रय चतुर्विध संघ For Private And Personal Use Only

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