Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ठिवाग्रन्थमाला मांधी के समान है । यह लक्ष्मी की दूती और मुक्ति की सखी है। सुबुद्धि की बहिन और दुःखाग्नि को शान्त करने के लिए मेघ पङ्क्ति के समान है । स्वर्ग पर चढ़ने के लिए नि:सरणी और दुर्गतिका द्वार बन्द करने के लिए आगल के समान है। इसलिए हे सज्जनो ! सब से पहले जीवों पर अनुकम्पा करो। इस के विना सब धार्मिक क्रियाएँ निष्फल हैं ॥ २५ ॥ पाषाणस्तरतात्सरित्पतिजले काष्ठां प्रतीची श्रयेत्सप्तांशुः शिशिरोऽनलो भवतु वा मेरुश्चलत्वासनात्। भूपीठं गगने प्रयातु दृषदि स्यादम्बुजानां जनिजन्तूनां हननं कदापि सुकृतं सूते न दुःखापहम् ॥२६॥ ___यदि पाषाण समुद्र के जल पर तैरने लगे, सूर्य पश्चिम दिशा में उदय होने लगे , अग्नि शीतल हो जावे , मेरुपर्वत अपने स्थान को छोड़ दे , पृथ्वीतल आकाश में चला जावे , पत्थर पर कमल उत्पन्न होने लगें, इत्यादि असंभव बातें भी कदाचित् संभव हो जायँ, तौ भी हिंसा से कभी दुःख को नाश करनेवाला पुण्यकर्म उत्पन्न नहीं हो सकता ॥२६॥ कैवल्योदयकारिणी भबवतां संतापसंहारिणी, सद्धृत्पद्मविहारिणी कृतिहरी दीनात्मनां देहिनाम् । सबोधामृतधारिणी क्षितितले नृणां मनोहारिणी, जीयाज्जीवदया सतांसुखकरीसर्वार्थमंदायिनी ॥२७॥ For Private And Personal Use Only

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