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नीतिदीपिका
जीवदया केवलज्ञान को उत्पन्न करने वाली तथा संसारीजिवों के संताप को दूर करनेवाली है । शुद्धहृदयरूपी कमल में विहारकरनेवाली तथा दीन प्राणियों के कर्म का क्षय करनेवाली है । पृथिवी पर सम्यग्ज्ञान रूपी अमृत की वर्षा करनेवाली, तथा सज्जनों को मुख देनेवाली और समस्त इष्ट प्रयोजन को सिद्ध करनेवाली है । इसप्रकार मन को प्रसन्न करने वाली दया संसार में चिरकाल तक जीवित रहे ॥२७॥ अभ्यस्ता निखिलागमा बहुतपः क्लेशेन सम्पादित,
दत्तं दानमनर्घवस्तुबहुलं शश्वत्सुपात्रे मुदा । भक्तिर्या स्वगुरौ जिने बहु दृढं संसाधिता यत्नतो, हिंसां चेच्छ्रयतेतदाऽखिलमिदं नृणां भवेन्निष्फलम् __ जिसने सम्पूर्ण आगम का अभ्यास कर लिया,तथा अनेक कष्ट सहकर बहुतेरी तपस्या की। बड़ी उमंग से सदा उत्तम पात्र को अमूल्य मुन्दर पदार्थों का दान दिया, तथा वीतरागदेव और परिग्रहरहित गुरु की बड़े परिश्रम से पूर्ण सेवा-भक्ति भी की; यदि वह मनुष्य हिंसा का आचरण करे, तो उसके उक्त सब शुभकार्य निष्फल हो जाते हैं ॥२८॥ देवः पूजितमृद्धिकृत्सुजनतासजीवनं सन्मतं,
मुक्तेः केलिवनं प्रभावभवनं श्रेयस्करं पावनम् । कीर्तेः साधनमाधिभिच्छुभधन विश्रम्भसम्पादकं,
सत्सन्तोषकर मदा विजयते लोकेऽत्र सत्यं वचः।।
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