Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सेठियाप्रन्थमाला www.kobatirth.org (१८) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दारिद्र्यं न विशेत्तदीयसदनं दोषाश्च दूरे ततः, कुर्युः सख्यमनेन सज्जनगगणा यः स्तैन्यहीनो जनः ॥ ३३ ॥ जो मनुष्य चोरी नहीं करता है, उसको सिद्धि अपना वर बना लेती है । निर्मल कीर्ति उससे प्रेम करती है । सम्पूर्ण सम्पत्ति उसके पास आजाती है । चोरी नहीं करनेवाले को पृथिवी पर कभी कष्ट नहीं होता । उसके घर में दरिद्रता प्रवेश नहीं कर सकती, तथा दोष उससे सदा दूर रहते हैं, इसलिए सज्जन पुरुषों को चोरी नहीं करने वाले के साथ मित्रता करनी चाहिए ॥ ३३ ॥ नादत्ते सुकृती ह्यदत्तमिह यस्तं श्रीः श्रयत्यम्बुजं, हंसीवासितमम्बुदं तडिदिव श्लाघा तमालिङ्गति । सूर्याद्रा त्रिरिवातिदूरमपयात्यहाव्रजोऽस्माज्जनाद्विद्यासक्तमिवैति तं गुणगणा ये सर्वसौभाग्यदाः ||३४|| जो पुण्यात्मा मनुष्य स्वामी की आज्ञा के बिना दूसरे की वस्तु नहीं लेता है, लक्ष्नी उसकी इस प्रकार सेवा करती है, जैसे हंसनी कमल की सेवा करती है । कीर्तिउसका इस प्रकार अलिङ्गन करती है, जैसे बिजली काले मेघ का आलिङ्गन करती है। चोरी नहीं करने वाले के पाप इस प्रकार दूर होजाते हैं, जैसे सूर्य का उदय होने से रात्रि दूर होजाती है। जितने सौभाग्यादि उत्तम उत्तम गुण हैं, वे सब चोरी के त्याग करने वाले को इस तरह प्राप्त होजाते हैं, जैसे विद्या परिश्रमी पुरुष को प्राप्त होती है ॥ ३४ ॥ For Private And Personal Use Only

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