Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३) नीतिदीपिका नाश करनेवाली तथा उत्तम नीति रूपी लता का मर्दन करनेकेलिए मदोन्मत्त हाथी के समान है ॥ ४२ ॥ क्रूरारिः प्रशमस्य धैर्यहितहृन्मोहस्यभूमिः परा पापानां परिचायकः पदमदोऽनपदां शाश्वतम् । लीलगद्यानमतीव शोभितमसद्धयानस्य हेतुः कलेहयोऽशुद्धपरिग्रहो बुधजनैः शोकस्य मूलं महत् ॥४३॥ यह अपवित्र परिग्रह शान्ति का पूरा दुश्मन, तथा धीरज और हित को हरनेवाला है । मोहकी निवासभूमि तथा पापों से प्रीति उत्पन्न करनेवाला है। नित्य ही अनर्थ और आपदाओं का स्थान तथा अपध्यान के क्रीड़ा करने का सुललित उद्यान है । झगड़े की जड़ तया शोक का मूलकारण है । बुद्धिमानों को ऐसे दुःखदायी परिग्रह का सर्वथा त्याग करना चाहिए । अथवा परिग्रह का परिमाण कर ममत्वभाव वटाना चाहिए ॥ ४३ ॥ नित्यं मत्तवदाचरत्यतिरयादाविष्टवज्जायते, लोभान्धो भवतिप्रकृष्टतरलो मूढो विचारे वरे। क्रूरः पापमतिः परापकरणे नित्योद्यतो निन्दकः, तुद्रो द्रव्यपरिग्रहेण सततं धन्योऽप्यधन्यो नरः॥४४॥ परिग्रह के कारण मनुष्य हमेशा पागल की तरह आचरण करता है तथा भूत से विरे हुए मनुष्य की भांति बहुत जल्दी बेसुध होजाता है । लोभ से अन्धा हुआ मनुष्य चंचल प्रकृति वाला होकर सदा उत्तम विचारों से शून्य रहता है । लोभी का स्वभाव क्रूर हो For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56