Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेठियाग्रंथमाला जाता है तथा उसकी बुद्धि पाप कार्यों में ही प्रवृत्त होती है। लोभी.. मनुष्य सदा दूसरे का बुरा करने में तथा निन्दा करने में तत्पर रहता है । लालच के कारण मनुष्य बद्ध विचारवाला तथा गायशाली क्ति भी भाग्य हीन हो जाता है ।।,१.४. यो, नित्य कटुतापको विकृतिकृत्रासादो नाशक ब्रह्मेनित्यसहोदरः शमरिपुः सत्कीर्त्तिवल्लीगजः । यो मूलं विषपादपस्य विमलज्ञानाम्बुतेजापतिः, क्रोधोऽयं कुशलेच्छुभिः सकुशलैस्त्याज्यो विपत्कार णम् ॥५४॥ क्रोध के.वशीभूत हुआ मनुष्य नीच पुरुषों के बोलने योग्य नि: न्य वचन बोलता है । क्रोध शरीर और आत्मा में विकार उत्पन्न क : रने वाला है, तथा चित्त में उद्वेग उत्पन्न करने वाला है । क्रोध के द्वारा प्राणी अपना और पाभ प्रातकाले हैं। क्रोध अग्नि त समान प्रतिमा को जलाने वाला मा शान्ति गुणगा, या शोचीति रूपी लेता का नाश के लिए हाथी के समान है। यह को वृक्ष की जड़ है ! निर्मक सन्म प्रवाल को मधवने के लिएासूर्य के में मान है, और विपत्तियों का मूल कारण है. | ऐसा समझकर आत्महितेच्छु पुरुषों को चाहिए कि इस क्रोध शत्रु का सर्वथा त्याग क' ग्दें ॥४५॥ For Private And Personal Use Only

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