Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेठियाग्रन्थमाला (२२) परिग्रह से हानिअंहः सञ्जनयन्कृपाकमलिनी क्लिश्नन्समुन्मूलयन् , धर्मद्रु खलु लोभसागरमहा संवईयन्नुद्रुजन् । मर्यादातटमादिशन् शुभमनोहंसप्रवाम परं किं वृद्धो न सदा परिग्रहसरित्पूरः परं कष्टकृत्॥४१॥ परिग्रह रूपी नदी का पूर पाप को उत्पन्न करता है । कृपारूपी कमलिनी का नाश करता हुआ धर्मरूपी वृक्ष को मूल से उ. खाड़ फेंकता है । लाभापी समुद्र को बढ़ाता हुआ, मर्यादारूपी तट को तोड देता है,तथा शुभविचार मापी हंस का दूसरे देशमें भगा देता है । जब साधारण परिग्रहरूपी नदी का प्रवाह इतने कष्टों को उत्पन्न करता है, तब वृद्धि को प्राप्त हुआ परिग्रह कौन से बड़े कष्टको नहीं देता है?॥ ४१ ॥ विन्ध्यः क्लेशगजे दवाग्निरनिशं सत्कृत्यरूपे वने, वात्या कोमलपङ्कजे पितृवनं यत्क्रोधवेतालके । द्वेषागामिदं प्रदोषबहुलं सम्पद्विनाशोन्मुखः सन्नीतिद्रुमवल्लरीमदगजो ह्यानुरागः परः ॥४२॥ द्रव्यकी अधिक लालसा क्लेशरूपी हाथी के निवास के लिए विन्ध्याचल पर्वत के समान तथा उत्तम कार्यरूपी वन को जलाने के लिए दावाग्नि के समान है। कोमल परिणाम रूपी कगन को उखाड़ने के लिए आंधी के समान तथा क्रोध रूपी वेताल के नृत्य करने केलिए श्मशान के समान है। द्रुषादि दोषों का घर तथा पूर्वप्राप्त हुई सम्पत्ति का For Private And Personal Use Only

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