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सेठियाग्रन्थमाला
शील का भङ्ग करने से हानि-- लोके तेम मिपातिताऽपि विमला कीर्तिपताकी निजा
दत्ता मुक्तिपुरी दृढा कुमतिना गाउँ कपाटागला । दावाग्निी रचिलोऽनिगौरवपदे स्वीये गुणारामके, स्वीय शीलमनयमेव सुखदं येन प्रलुप्तं मदात् ॥३७ ... जिसने काममंद में आकर सम्पूर्ण मुख को देनेवाले अमूल्य शीलवत का भङ्ग कर दिया, उस दबुद्धि ने संसार में अपनी निर्मल कीतिरूपी. बँजा नीचे गीग दी । मुक्तिरूपी नगर के दवजि में दृढ़ आगल लगा दो, तथा आत्मगौग्य को बढ़ानेवाले गुणरूपी बगीचे में दावाग्नि लगा दी है ॥३७॥
__ ब्रह्मचर्य का पालन करने में लाभ तेषां व्याधिशातं. प्रयाति विलयं लापत्र नमति,
श्रेयस्सन्ततया भवति सततंमान्निध्यागम: स्युःसुराः ।। कीतिमण्डति,मएडलं दशदिशां धो धरायां सदा वृद्धिं गच्छति याति पापपटली ये शीलमभूषिताः ॥ ____ जिनका आत्मा शील म भूधित है, उनक संकड़ों गंग दूर हो जाते हैं । शरीर मन और वचन सहानवाले दुःख अदृश्य हो. जाते हैं । ब्रह्मचर्य पालनेवालों का जीवन सुख से बीतता है। उनकी देव सदा सवा करते हैं। उनकी काति दशो. दिशाओं में फैलता है । उनका धर्म हमेशा बढ़ता रहता है, तथा पापपुञ्जवि लीन हो जाता है ।। ३८ ॥
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