________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२)
नीतिदीपिक
नूनं नाशयते कलकनिकरं पापाडुरं कृन्तति....
सत्कृत्योत्सवमाचिनाति नितर्रा ख्याति तनाति ध्रुवम्। हत्यापत्तिविषादविनवितति दत्त शुभां सम्पद,
ददाति सुखद सब्रह्मचयं धृतम् ॥३२।।
R
...उत्तमर्गति से पालन किया गया शाल व्रत कलङ्कसमूह का नाया करता है। पापके अंकुर का छेदन करता है | आदर सत्कार को बढ़ाता है । संमार में प्रतिष्ठा उत्पन्न करता है । आपत्ति दुःख और दिन का घात करता है । यह ब्रह्मचर्यव्रत उत्तम सम्पत्ति को देता है, तथा क्रम से स्वर्ग और मोक्ष के मुख.का अनुभव कराता है ॥३६॥
F
eti
TOTKE
:
अग्निस्तोयति कुण्डली सजति वा व्याघ्रः कुरङ्गायते, वज्र पत्रदलायते सुरगिरिः पाषाणति श्वेडकः । पीयूषत्यनिशं हिनत्यरिगणा व्याधिविनादायते विघ्नोघाऽपि महायते हि महतां शीलप्रभावाद्ध्वम् ।।
समापुसको का शान के प्रभाव सामि जल के समानाजी नन तथा मर्म पुष्पमाला समान बन जाता है । सिह मृग के समान अचानाकारी, तथा वन कमल के पत्ते के समान कोमल हो जाना है। भुमेर मत पाषाण के समान मुगमः तथा विष अमृत के समान मुग्व देनेवला हो जाता है । शत्र सदा के लिए मित्र बन जाता है, तथा व्याधि नुम्वरूप और विघ्न उत्सबारूप होजाते हैं ॥ ४० ॥
For Private And Personal Use Only